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बौद्ध परम्परा में सौन्दर्यशास्त्र का दर्शन : ४५
प्रकृति में सबसे सुन्दर कहा जा सकता है और वे विशाल जन समूह को बदलने की क्षमता रखते हैं तथा वे भावी पीढ़ियों के लिए प्रकाश-स्तम्भ होते हैं। जैसे अष्टावक्र, चाणक्य, सुकरात इत्यादि में शारीरिक सौन्दर्य की कमी थी लेकिन उनके यश का सौरभ म्लान न होते हुए आज भी अक्षुण्ण है। जैसे१. ईसा मसीह और मोहम्मद साहब ने सत्य की खोज में जीवन बिताया और विशाल जनसमूह को उसकी सुन्दरता के दर्शन कराए। इस तरह दोनों का सौन्दर्य विश्वविश्रुत है, जबकि दोनों में से किसी ने भी सौन्दर्य शास्त्र पर कुछ भी नहीं लिखा। २. सुकरात अपने समय का बहुत बड़ा सत्य-द्रष्टा था, जबकि कहा जाता है कि वह यूनान का सबसे कुरूप व्यक्ति भी था। तात्पर्य यह है कि सत्य का बाह्य रूप के साथ तादात्म्य सम्बन्ध नहीं है। सुकरात की सत्यनिष्ठा, उसका सत्यज्ञान, जीवन भर का ओज उसे सौन्दर्य का प्रतिमान सिद्ध करता है और तत्कालीन फिडियास जैसे चित्रकार ने भी, सुकरात का कुरूप चेहरा न देखकर, उसके भीतर के सत्य को समझा और उसकी प्रशंसा की, जबकि वह बाहरी सौन्दर्य को देखने और उसकी प्रशंसा करने का अभ्यस्त था।
भारतीय सौन्दर्य-दृष्टि, आध्यात्मिक संवेदनशीलता और आन्तरिक जिज्ञासा की प्रताड़ना से वशीभूत होकर अभिव्यक्त होती है। बौद्ध-परम्परा का सौन्दर्यशास्त्र का दर्शन भी भारतीयता से असंपृक्त नहीं है, क्योंकि इसका हेतु भी अन्दर की आध्यात्मिक अग्नि ही है, जो आज भी सहृदय जनों को 'अलौकिक प्रेम की संवेदनशीलता से द्रवित कर रहा है। बौद्ध परम्परा का सारतत्त्व है, 'हर बात का कोई न कोई कारण होता है।' यह सूत्र ही 'शाक्य' मुनि के सौन्दर्य-दृष्टि का हेतु है। यह बोधगया के उरुबेला में सिद्धार्थ को अनिश्चय अवस्था में यायावर (बंजारिन) नारियों द्वारा प्रदान की गयी दीक्षा है, 'वीणा के तारों को अधिक ढीला न करो, नहीं तो वे न बजेंगे। वीणों के तारों को अधिक न खींचो, नहीं तो वे टूट जायेंगे।' सिद्धार्थ ने मध्यम मार्ग को अंगीकार किया (शरीर को अल्पाहार और अतिसुख से दूर रखा)। इसका साक्षात्कार सिद्धार्थ के 'महाभिनिष्क्रमण से लेकर गौतम के निर्वाण प्राप्त होने की अवस्था के अनुशीलन से स्वयमेव हो जाता है। ____ महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःख सत्य है। जर्मन दार्शनिक शॉपेनहावर का विचार है कि आन्तरिक वेदना को भोग-वृद्धि द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता है। उस महापीड़ा से मुक्ति का मार्ग लोकहित में स्वयं को समर्पित करने से मिलता