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________________ बौद्ध परम्परा में सौन्दर्यशास्त्र का दर्शन : ४३ (जैसे मौर्य प्रासाद या ताजमहल का सौन्दर्य)। निष्कर्षतः सौन्दर्य को पुष्प-पराग के समान कहा जा सकता है, जिसपर सहृदयजन स्वयमेव उसी प्रकार आकृष्ट होते हैं, जिस प्रकार पुष्प के सौरभ से मधुकर खिंचे चले आते हैं। अतः सौन्दर्य वस्तु का मोहनीकरण धर्म विशेष है, जो कान्ता के समान अपनी उपस्थिति मात्र से सहृदय जन को अभिभूत कर देता है। प्रसिद्ध आलंकारिक राजानक रुय्यक ने अपने 'सहृदयलीला' नामक ग्रन्थ में सहृदय जनों में सौन्दर्य-बोध के लिए दस गुणों की अपेक्षा किया है (जब कि अलंकार सात ही होते हैं), जिन्हें वात्स्यायन ने भी ‘उत्तम नागरिक' बताया है। सौन्दर्यशास्त्र का प्राचीन निरूपण तत्त्वमीमांसीय है। तत्त्वमीमांसीय निरूपण में सौन्दर्य को एक प्रकार का तत्त्व, सत्ता अथवा कम से कम वस्तुओं के विषयनिष्ठ पक्ष का प्रतिपादित किया गया है। प्लेटो ने अपने कुछ संवादों में सुन्दरता को तत्त्वमीमांसीय रूप से वस्तुओं के विषयनिष्ठ गुणों के रूप में ही बताया है। नव्यप्लेटोवादी दार्शनिक प्लॉटिनस की सौन्दर्य-दृष्टि अध्यात्मवादी है, जिसके अनुसार जब परमतत्त्व अपनी पूर्ण दैवी सत्ता में चमकता या अभिव्यक्त होता है, वही सुन्दरता होती है। हीगल के नवीन तत्त्वमीमांसीय दृष्टिकोण में सौन्दर्य निरपेक्ष प्रत्यय है, जो कुछ इन्द्रियजन्य माध्यम द्वारा प्रकाशित होता है। यह एक प्रकार का आत्म-प्रकाशन है। शॉपेनहावर के तत्त्वमीमांसीय दृष्टिकोण के अनुसार जब हम समस्त इच्छाओं को त्याग देते हैं और 'जीवन की इच्छा' का बहिष्कार कर देते हैं तब हम इस आदर्श सौन्दर्य को देखने में समर्थ होते हैं, जिसे तर्कबुद्धि नहीं समझती। मार्शल के अनुसार सुन्दरता वस्तु के उन विशेष गुणों का नाम है, जिनके द्वारा वे हमें सौन्दर्यपरक गुण प्रदान करते हैं, क्योंकि सुन्दर वस्तु में एक प्रकार की मोह लेने की शक्ति होती है, जिससे सौन्दर्यपरक ध्यान में जीवात्मा स्वयं को भूल जाता है। यहाँ तक कि स्मृति की पुनर्चेतना में भी ये वस्तुएँ आनन्दायक होती हैं। सौन्दर्यशास्त्र का विषयीनिष्ठवादी तत्त्वमीमांसीय दृष्टिकोण इटली के दार्शनिक बेनेडिटो क्रोचे का है, जिसका कथन है कि सौन्दर्य भौतिक वस्तुओं में नहीं होता, वह पूर्णतः मानसिक होता है, जिसके द्वारा हम अपनी अनुभूतियों को अन्तःप्रज्ञा में परिवर्तित कर देते हैं। कान्ट ने अपनी तृतीय महान कृति 'दि क्रिटिक ऑफ जजमेण्ट' में सौन्दर्यपरक सिद्धान्त को आधुनिक वैज्ञानिक तथा मनोवैज्ञानिक विधि से नवीन दिशा प्रदान की है, जिसके अनुसार यद्यपि सुन्दरता मानसिक है, तथापि वह विषयनिष्ठ भी है, क्योंकि वह हमेशा निर्णय की जाने वाली वस्तु रहती है, जिसमें हम कहते हैं, 'यह बहुत सुन्दर हैं', और
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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