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श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४-१ अक्टू.-दिस. ०९-जन.-मार्च १०
बौद्ध परम्परा में सौन्दर्यशास्त्र का दर्शन
डॉ. रामकुमार गुप्त
सौन्दर्यशास्त्र, सुन्दरता के विषयनिष्ठ तथा विषयीनिष्ठ लक्षण एवं स्वयं सुन्दरता की प्रकृति का प्रतिपादन करता है। नियामक विज्ञानों में सौन्दर्यशास्त्र तर्कशास्त्र की अपेक्षा नीतिशास्त्र के अधिक निकट है। आदिकाल से विचारक सुन्दरता तथा वस्तुओं के उस तत्त्व को, जो उन्हें सुन्दर बनाता है, आश्चर्य से देखते आ रहे हैं। सुन्दरता का एक प्रतिमान होता है जो हमारे जीवन को समृद्ध बनाने में योगदान देता है। लेकिन सौन्दर्य क्या है? यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसे साधारण प्रश्नों की परिधि में नहीं गिना जा सकता। सौन्दर्य की समस्या का यही अवयव ऐसा है, जिसपर व्यापक विचार-विमर्श हुआ है तथा इनके अनेक समाधान प्रस्तुत किए गए हैं। हम जानते हैं कि सुन्दरता क्या है, किन्तु तभी तक जब तक हमसे पूछा नहीं जाता। सौन्दर्य बोध से आशय है-हृदय में करुणा की अनुभूति होना अर्थात् सहृदय होना। अन्यथा असहृदयी का सौन्दर्य सदैव आकाश-पुष्प की भाँति रहेगा। जैसे सन् २००० में सौन्दर्य से अनभिज्ञ असहृदयी जनों द्वारा बामियान की बुद्ध-प्रतिमा पर प्रहार करना। अभिनवगुप्त के अनुसार सहृदय वे व्यक्ति हैं, जिनके मनरूपी मुकुर में वर्णनीय विषय के साथ तन्मय हो जाने की योग्यता होती है। जैसे चीनी यात्री फाह्यान पाटलिपुत्र में मौर्य-प्रासाद के सौन्दर्य से चकाचौंध होकर उसे मानसिक शक्ति से निर्मित न मानकर उसे दैवीय शक्ति से निर्मित मान लेता है। इसी तरह मि. विलियम आर्चर के यूरोपीय मन को ताजमहल के सौन्दर्य ने इतना अधिक मोहित किया कि मि. आर्थर ने ताजमहल को इटली के किसी मूर्तिकार की रचना कह दिया।
देववाणी आचार्य माघ के अनुसार-वास्तविक सौन्दर्य वह है जो एकसा रहे, फिर भी दर्शकों के लिए उसमें नित्य नवीनता का प्रस्फुटन हो। सौन्दर्य का विभाजन नहीं किया जा सकता है और न ही वह किसी व्यक्ति विशेष का अनुभव मात्र ही है, सौन्दर्य अखण्ड और अभिन्न है और अनुभव करने वाले अनेक हैं। सभी अपने-अपने सौन्दर्य-दृष्टि के अनुसार उसका अनुभव करते हैं *रीडर, दर्शनशास्त्र-विभाग, टी.डी. पी.जी. कालेज, जौनपुर।