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जैन दर्शन में काल की अवधारणा : ३३
च कालस्य'१५ अर्थात् वर्तना, परिणाम, क्रिया, परत्व और अपरत्व-ये काल द्रव्य के कार्य हैं। वर्तना शब्द के दो अर्थ हैं-वर्तन करना तथा वर्तन कराना। प्रथम अर्थ काल के सम्बन्ध में तथा द्वितीय अर्थ बाकी द्रव्यों के सम्बन्ध में घटित होता है। तात्पर्य यह है कि काल स्वयं परिवर्तन करता है तथा अन्य द्रव्यों के परिवर्तन में भी सहकारी होता है। जैसे कुम्हार का चाक स्वयं परिवर्तनशील होता है तथा अन्य मिट्टी आदि को भी परिवर्तित करता है, उसी प्रकार काल भी है। संसार की प्रत्येक वस्तु उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक होने से परिवर्तनशील है, काल उस परिवर्तन में निमित्त है। काल परिणाम भी कराता है। एक देश के दूसरे देश में प्राप्ति हेतु हलन-चलन रूप व्यापार क्रिया है। परत्व का अर्थ उम्र में बड़ा
और अपरत्व का अर्थ उम्र में छोटा है-ये सभी कार्य भी काल द्रव्य के हैं। नयापनपुरानापन आदि भी कालकृत ही हैं।
परिवर्तन का जो कारण है, उसे ही काल कहते हैं। काल की व्याख्या दो दृष्टियों से की जा सकती है। द्रव्य का स्वजाति के परित्याग के बिना वैनसिक
और प्रायोगिक विकार रूप परिणाम व्यवहार दृष्टि से काल को सिद्ध करता है। प्रत्येक द्रव्य परिवर्तित होता रहता है। परिवर्तनों के होते हुए भी उसकी जाति का कभी विनाश नहीं होता। इस प्रकार के परिवर्तन परिणाम कहे जाते हैं। इन परिणामों का जो कारण है, वह काल है। यह व्यवहार दृष्टि से काल की व्याख्या है। प्रत्येक द्रव्य और पर्याय की प्रतिक्षणभावी स्वसत्तानुभूति वर्तना है। इस वर्तना का कारण काल है। यह काल की पारमार्थिक व्याख्या है। प्रत्येक द्रव्य उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक वृत्तिवाला है। यह वृत्ति प्रतिक्षण रहती है। कोई भी क्षण इस वृत्ति के बिना नहीं रह सकता। यही पारमार्थिक काल का कार्य है। काल का अर्थ है- परिवर्तन। परिवर्तन को समझने के लिए अन्वय का ज्ञान होना आवश्यक है। अनेक परिवर्तनों में एक प्रकार का अन्वय रहता है। इसी अन्वय के आधार पर यह जाना जा सकता है कि उस वस्तु में परिवर्तन हुआ। यदि अन्वय न हो तो क्या परिवर्तन हुआ, किसमें परिवर्तन हुआ-इसका जरा भी ज्ञान नहीं हो सकता। स्वजाति का त्याग किये बिना विविध प्रकार का परिवर्तन होना काल का कार्य है। इसी काल के आधार पर हम घंटा, मिनट, सेकण्ड आदि विभाग करते हैं। यह व्यावहारिक काल है। पारमार्थिक या निश्चय दृष्टि से प्रत्येक पदार्थ का क्षणिकत्व काल का द्योतक है। क्षण-क्षण में पदार्थ में परिवर्तन होता रहता है। यह परिवर्तन बौद्ध परिवर्तन की तरह ऐकान्तिक न होकर ध्रौव्ययुक्त है।
काल अरूपी और अजीव द्रव्य है। काल अनन्त है। दिन, रात, मास, ऋतु,