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________________ २४ : श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४, १ / अक्टू.-दिसम्बर ०९-जन.-मार्च-१० सम्प्रदायों में तापस के रूप में दीक्षित होकर संयम-साधना की और स्वर्ग प्राप्त किया। इसी प्रकार से धर्मग्रन्थों के प्रति भी जैनों की समान रूप से उदार दृष्टि रही है। वे निश्चयपूर्वक कहते हैं कि प्रज्ञावान् सम्यग्दृष्टि व्यक्ति के लिए मिथ्याश्रुत भी सम्यक्श्रुत हो सकता है, जबकि विपर्यस्तबुद्धि वाले मिथ्यादृष्टि व्यक्ति के लिए सम्यक्श्रुत भी मिथ्याश्रुत हो जाता है। वस्तुतः प्रश्न ग्रन्थों का नहीं है, प्रश्न है उनका अध्ययन करने वाले के नजरिए का, जिसके कारण कोई भी ग्रन्थ सम्यक् या मिथ्या होता है। वस्तुतः ग्रन्थकारों और उसकी व्याख्या करने वालों की दृष्टि मूल्यवान् होती है। नन्दीसूत्र में इस बात को स्पष्ट रूप से समझाया गया है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि धर्मग्रन्थों के सम्बन्ध में जैनों का रवैया न तो कठोर है और न ही संकीर्ण। . जैन-ग्रन्थों में धार्मिक-सहिष्णुता के प्रसंग __ जैनधर्म का इतिहास धार्मिक-सहिष्णुता के प्रसंगों से परिपूर्ण है। जैनविचारकों ने अन्य धर्मों और विचारधाराओं के प्रति समादरभाव प्रस्तुत किया है। सूत्रकृतांग, जो कि जैनों का एक प्राचीन ग्रन्थ है, (ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी) में कहा गया है कि जो अपने-अपने मत की प्रशंसा करते हैं और दूसरे के मतों की निन्दा करते हैं तथा उनके प्रति विद्वेष रखते हैं, वे संसार चक्र में परिभ्रमित होते रहते हैं। संभवतः धार्मिक-उदारता के लिए इससे महत्त्वपूर्ण अन्य कोई वचन नहीं हो सकता है। इसी कालखण्ड के दूसरे प्रसिद्ध जैन-ग्रन्थ ऋषिभाषित के अन्तर्गत उन पैंतालीस अर्हत् ऋषियों के उपदेशों का संकलन है, जिनमें पार्श्वनाथ और महावीर को छोड़कर लगभग सभी जैनेतर परम्पराओं के हैं। नारद, भारद्वाज, नमि, रामपुत्र, सारिपुत्र, महाकाश्यप, मंखलि गोशाल आदि अनेक धर्ममार्ग के प्रवर्तकों एवं आचार्यों के विचारों का जिस आदर के साथ संकलन किया गया है, वह भी जैनों की धार्मिक-उदारता और सहिष्णुता का परिचायक है। इन सभी को अर्हत्-ऋषि और इनके उपदेशों को अर्हत् वचन कहा गया है। संभवतः, विश्वधर्म के इतिहास में यह एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जहाँ विरोधी विचारधारा और विश्वासों के व्यक्तियों के वचनों को अर्हत्-वाणी के रूप में स्वीकार कर समादर के साथ प्रस्तुत किया गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन जैन-विचारकों का दृष्टिकोण कितना उदार एवं निष्पक्ष रहा है। भगवतीसूत्र के अन्दर हम यह देखते हैं कि भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गणधर इन्द्रभूति गौतम को मिलने के लिए उनके पूर्व परिचित मित्र स्कन्धक
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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