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जैनधर्म में धार्मिक-सहिष्णुता की स्थापना के मूल आधार : २१
और माध्यस्थ-भाव का समर्थन करता है। यही एकमात्र उपाय है, जिसके द्वारा धर्मों एवं विचारधाराओं में विविधता के कारण उत्पन्न संघर्षों को सुलझाया जा सकता है। सत्कारी मुखर्जी ने सही कहा था कि जैनाचार्य उस अतिवाद या एकांगी दृष्टिकोण में विश्वास नहीं करते हैं, जो निरपेक्षतावाद का प्रमुख तार्किक-आधार है। व्यावहारिक-दृष्टि से देखें, तो यह तार्किक-रवैया मतान्धता को जन्म देता है। यदि इसमें भी एक कदम और आगे बढ़ता है, तो यह धर्मान्धता फैलाता है, जो कि मानवीय-हृदय का सबसे निकृष्ट और घृणिततम भावावेग है। अनेकान्तवाद की दृष्टि में तो अपने से विरोधी का विचार भी सत्य होता है। जैसा कि सिद्धसेन दिवाकर (ईसा की पांचवीं शताब्दी) कहते हैं कि सभी सम्प्रदायों की विचारधारा अपने-अपने दृष्टिकोण से सत्य है, वे असत्य तभी होती हैं, जब वे अपने से विरोधी विचारधारा की सत्यता का निषेध करती हैं। हेमचन्द्र, जो कि एक जैन-आचार्य थे, उन्होंने शिव-स्तुति की भी रचना की थी। यही उदारता पश्चातवर्ती जैन-आचार्यों ने भी बरकरार रखी, जिसे आनंदघन और वर्तमान समय के कई आचार्यों ने अपने हिन्दी और गुजराती भाषाओं में रचित ग्रन्थों में प्रदर्शित किया है
'बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो।
भक्ति भाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी में लीन रहो।।' मुक्ति का द्वार सबके लिए उद्घाटित
जैनधर्म यह मानता है कि जो भी व्यक्ति बन्धन के मूलभूत कारण रागद्वेष को समाप्त कर सकेगा, वह मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। मुक्ति का द्वार तो सबके लिए खुला हुआ है। वे इस बात को नहीं मानते हैं कि केवल जैनधर्म को मानने वाला ही मोक्ष को उपलब्ध हो सकता है और दूसरे धर्मों के लोग मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते हैं। उत्तराध्ययनसूत्र, जो कि जैन-परम्परा का एक प्राचीन आगम-ग्रन्थ है, उसमें 'अन्य लिंगसिद्ध' का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसका तात्पर्य है कि जैनेतर धर्मों और सम्प्रदायों से भी आत्मा मुक्ति को प्राप्त कर सकती है। जैन-आचार्यों के अनुसार मोक्ष को प्राप्त करने का केवल एक ही आधार है-राग और द्वेष का त्याग करना। आचार्य हरिभद्र स्पष्ट रूप से कहते हैं-'जो भी समभाव की साधना करेगा, वह निश्चित ही मोक्ष को प्राप्त कर सकेगा, फिर चाहे वह श्वेताम्बर हो, या दिगम्बर हो, या बौद्ध हो, या किसी अन्य धर्म का मानने वाला हो। जैनाचार्यों का यह उदार दृष्टिकोण ही उन्हें सब धर्मों के प्रति सहिष्णु बनाता है।