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________________ हिन्दी अनुवाद : हे चित्रवेग! इस समय अधिक कहने से क्या प्रयोजन? जो पूछा गया था, उसी का जवाब दे रहा हूँ। __ (कनकरथ-विधुप्रभ-प्रियमित्र-हजी देवलोकमां ज) गाहा : कणगरहो सो साहू अइप्पिओ आसि तुज्झ अन्न-भवे / तत्तो य देव-लोए विहुप्पहो नाम जो देवो / / 247 / / संस्कृत छाया : कनकरथः स साधुरतिप्रियाऽऽसीत् तवान्यभवे / ततश्च देवलोके विधुप्रभो नाम यो देवः / / 247 / / गुजराती अनुवाद : ते कनकरथ नामना साधु के जे अन्य अवमां तने अतिप्रिय हता, ते ज देवलोकमां विधुप्रय नामना जे देव हताहिन्दी अनुवाद : वह कनकरथ नामक साधु जो अन्य भव में तुझे अत्यन्त प्रिय था, उसी देवलोक में विधुप्रभ नामक जो देव थागाहा : सो य अहं तुह वल्लह-मित्तो अज्जवि तत्थ वसामि दिवम्मि / कारणमित्थमिमं तु पडुच्च मे अइ-संगयओ सि तुमंति / / 248 / / संस्कृत छाया : स चाहं तव वल्लभमित्रमद्यापि तत्र वसामि दिवे / कारणं इत्थमिदं तु प्रतीत्य ममातिसङ्गतकोऽसि त्वमिति / / 248 / / गुजराती अनुवाद : ते ज हुं तारो प्रिय मित्र आजे पण देवलोकमां रहुं छु। आ कारणथी ज तुं माटो प्रिय मित्र छ। हिन्दी अनुवाद : मैं तुम्हारा वही प्रिय मित्र आज भी देवलोक में रहता हूँ। इसी कारण से तुम मेरे प्रिय मित्र हो। 613
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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