________________
(धनपतिदेव द्वारा प्रतिबोध-दीक्षा) गाहा :
जइया य तुमं भद्दे! छूढा अंतेउरम्मि जुवरन्ना । तइयच्चिय खयरेणं मायाइ सुमंगलेण अहं ।। २१०।। भुत्ता पभूय-कालं धणवइ-देवेण बोहिया तत्तो।
जाया चंदजसाए पय-मूले सुयणु! पव्वइया ।। २११।। (युग्मम्) संस्कृत छाया :
यदा च त्वं भद्रे! क्षिप्ताऽन्तःपुरे युवराजेन । तदैव खचरेण मायया सुमङ्गलेनाऽहम् ।।२१०।। भुक्ता प्रभूतकालं धनपतिदेवेन बोधिता ततः ।
जाता चन्द्रयशायाः पादमूले सुतनो! प्रव्रजिताः ।। २११।। (युग्मम्) गुजराती अनुवाद :
तथा हे भद्रे! ज्यारे कनकरथ युवराज वडे तने अंतःपुरमां रखाइ त्यारे ज मायापूर्वक सुमंगल विद्याधर वडे हुं घणो समय भोगवाई त्यारपछी धनपति देव वडे (प्रतिबोध पमाडायेली) हुं हे सुतनु! चन्द्रयशा साध्वीना चरण-कमलमा दीक्षित थई। हिन्दी अनुवाद :
तथा हे भद्रे! जब कनकरथ युवराज के द्वारा उस अन्त:पुर में रखी गई, तब मायापूर्वक सुमंगल विद्याधर के द्वारा मैं बहुत समय तक भोगी गई, उसके बाद धनपति देव के द्वारा (प्रतिबोध दी गई) मैं हे सुतनु! चन्द्रयशा साध्वी के चरण कमलों में दीक्षित हो गई।
(अनंगवती-धनवाहननी दीक्षा) गाहा :
एसावि अणंगवई धम्मं सोऊण भव-भयुब्बिग्गा ।
निय- भत्तुणा समेया पव्वइया एत्थ गच्छम्मि ।। २१२।। संस्कृत छाया :
एषाऽपि अनङ्गवती धर्मं श्रुत्वा भव- भयोद्विग्ना । निजभर्ना समेता प्रव्रजिताऽत्र गच्छे ।। २१२।।
597