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________________ संस्कृत छाया : न च केनाऽपि प्रगुणौ कृतौ कालेन रक्षकनरेषु । कथमपि प्रमादपरेषु निःसृतौ इमौ तु ।।२०३।। गुजराती अनुवाद : कोइपण वैद्यो वडे तेओ साजा न कराया अने क्यारेक रक्षक पुरूषोनां प्रमादने कारणे ते चंने (त्यांथी) नीकली गया। हिन्दी अनुवाद : किसी भी वैद्य के द्वारा वे स्वस्थ नहीं किए गए और किसी समय रक्षक पुरुषों के प्रमाद के कारण वे दोनों वहाँ से निकल गए। (विनंती) गाहा : भणियं च वसुमईए भयवं! एयाण मूढ-चित्ताणं । जइ पेच्छह उवयारं, पडिजोगं देह चिंतेउं ।। २०४।। संस्कृत छाया : भणितं च वसुमत्या भगवन्! एतयोर्मूढ-चित्तयोः । यदि पश्यत उपकारं प्रतियोगं देहि चिन्तयित्वा ।। २०४।। गुजराती अनुवाद : वसुमती वडे कहेवायुं हे गुरु भगवंत! मूढ़ थयेला आ चनेनो कोई उपकार आप जोता हो तो विचार करीने तेने दूर करनार (प्रतिचूर्ण) आपो। हिन्दी अनुवाद : वसुमती के द्वारा कहा गया- हे गुरु भगवन्त! मूढ़ हुए इन दोनों का कोई उपकार यदि आप जानते हैं तो विचार कर उसे दूर करनेवाला (प्रतिचूर्ण) प्रदान करें। गाहा : तत्तो गुरुणा तेसिं दिन्नो उम्माय-नासण-पडिट्ठो। पडिजोगो, जायाइं दोण्णिवि अह सत्थ-चित्ताई ।। २०५।। संस्कृत छाया : ततो गुरुणा तयो दत्त उन्माद-नाशन-पटिष्ठः । प्रतियोगो जातौ द्वावपि अथ स्वस्थचित्तौ ।। २०५।। 594
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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