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संस्कृत छाया :
योगो मति-मोहकरः शीर्षे क्षिप्तोऽनयोः सुप्तयोः ।
एकया सपल्या ईर्ष्यावशगाढनुद्धया ।।२०१।। गुजराती अनुवाद :
सूतेला स्वा आ चंनेना मस्तक उपर ईर्ष्या वडे क्रोधायमान थयेली एक शोकपत्नी वडे मतिभ्रम करनार चूर्ण नखायुं छे। हिन्दी अनुवाद :
सोए हुए इन दोनों के मस्तक पर ईर्ष्या के कारण क्रोधित किसी शोकपत्नी के द्वारा मतिभ्रम करनेवाला चूर्ण डाल दिया गया है।
(पिता द्वारा वैद्यो बोलावाया)
गाहा:
तस्स वसेणं दोण्हवि मइ-संमोहो इमाण संजाओ।
रत्ना य तओ विज्जा बहवे सद्दाविआ तत्थ ।। २०२।। संस्कृत छाया :
तस्य वशेन द्वयोरपि मति-सम्मोहोऽनयोःसञ्जातः ।
राज्ञा च ततो वैद्या बहवः शब्दापितास्तत्र ।।२०२।. गुजराती अनुवाद :
ते चूर्णने कारणे आ चनेनी मति अमित थई गई छे, तेथी तेना पितारा पण घणा वैद्योने बोलाव्या। हिन्दी अनुवाद :
उस चूर्ण के कारण इन दोनों की मति भ्रमित हो गई है, अत: इनके पिता ने भी बहुत से वैद्यों को बुलवाया।
(रक्षकोनो प्रमाद)
गाहा:
न य केणवि पउणाई कयाइं कालेण रक्खग-नराण । कहवि पमाय-पराणं नीहरियाई इमाइं तु ।। २०३।।
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