SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत छाया : परिणीताऽऽसीत् पुरा सुबन्धुना मेखलावती पुर्याम् । दृष्टा कनकरथेन कदाचिदथ राजपुत्रेण ।।१९२।। गुजराती अनुवाद : पहेला मेखलावती नगरीमां सुबंधु साथे परणावी हती। पछी क्यारेक राजपुत्र कनकरथ वडे ते जोवाई। हिन्दी अनुवाद : पहले मेखलावती नगरी में सुबन्धु के साथ (इसका) विवाह किया गया। उसके बाद कभी वह राजपुत्र कनकरथ के साथ देखी गई। (कनकरथ द्वारा अंतःपुरमा लवाई) गाहा : अंतेउरम्मि छूढा अइगुरु-अणुराय-हरिय-हियएण । सयलोरोह-पहाणा जाया अह तस्स वल्लहिया ।।१९३।। संस्कृत छाया : अन्तःपुरे क्षिप्ताऽति-गुर्वनुराग-भरित-हृदयेन । सकलावरोधप्रधाना जाताऽथ तस्य वल्लभिका ।।१९३।। गुजराती अनुवाद : अत्यंत अनुरागथी खेंचायेला हृदयवाला ते कनकरथे तेने अंतःपुरमां राखी, तेने अतिप्रिय स्वी तेणी समस्त अंतःपुरमा प्रधान थई गई। हिन्दी अनुवाद : अत्यन्त अनुराग से आकर्षित हृदयवाले उस कनकरथ ने उसे अन्त:पुर में रखा, उसे अति प्रिय होने के कारण वह अन्त:पुर में प्रधान हो गई। गाहा : एयं मह पच्चक्खं सव्वंपि हु सासुरे वसंतीए । वित्तं, तुमएवि सुयं अज्जे! लोय-प्पवायाओ ।। १९४।। संस्कृत छाया : एतन्मम प्रत्यक्षं सर्वमपि खलु श्वाशुरे वसन्त्याः । वृत्तं त्वयाऽपिश्रुतं आयें ! लोकप्रवादात् ।। १९४।। 589
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy