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________________ जैनधर्म में धार्मिक-सहिष्णुता की स्थापना के मूल आधार : १७ निष्पक्ष और पूर्वाग्रह से रहित व्यक्ति ही अपने विरोधियों की विचारधारा एवं धर्म में निहित सत्यांशों को समझ सकता है और इसी प्रकार से उन्हें भी चिन्तन करने के लिए प्रेरित कर अपनी विचारधारा और धर्म को निन्दित होने से बचा सकता है। धार्मिक नेताओं, मताग्रहों, धार्मिक-सिद्धान्तों और कर्मकाण्ड के प्रति रागात्मक-दृष्टि व्यक्ति में अन्धविश्वास का कारण बनती है। परिणामतः समाज में धार्मिक-असहिष्णुता और धर्मोन्माद का वातावरण निर्मित होता है। जो धर्म व्यक्ति को विवेकशील होने के बजाए उसके प्रति केवल श्रद्धालु होने पर अधिक जोर देता है, वह धर्म संकीर्ण और रूढ़िवादी होता है। इसी प्रकार से जो धर्म व्यक्ति को विवेकपूर्वक विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है, वह दूसरे धर्मों के प्रति अधिक सहिष्णु एवं मैत्रीभाव रखने वाला होता है। धार्मिक आस्थाओं, कर्मकाण्ड आदि के प्रति श्रद्धा करने के सन्दर्भ में विवेकबुद्धि या विश्लेषणात्मक तर्कपूर्ण नजरिया व्यक्ति के लिए एक नियन्त्रक तत्त्व का काम करता है। जैनधर्म कहता है कि एक सत्यान्वेषी या वीतरागता को पाने के अभिलाषी के लिए अपने धर्मगुरु, धर्मग्रन्थों और साधना-मार्ग के प्रति राग-भाव रखना भी उसके आध्यात्मिक-विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। वस्तुतः, रागात्मकता अन्धविश्वास पैदा करती है और अन्धविश्वास से घृणा, असहिष्णुतापूर्ण आचरण की उत्पत्ति होती है। जैनाचार्यों के अनुसार रागात्मकता ही वास्तविक बंधन है, इसलिए यदि कोई व्यक्ति रागवृत्ति की गिरफ्त में है, तो वह कभी भी मुक्ति को उपलब्ध नहीं हो सकता है। भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य और गणधर इन्द्रभूति गौतम को जब तक भगवान् महावीर जीवित रहे, कैवल्य की प्राप्ति नहीं हो सकी, वे वीतरागता को उपलब्ध नहीं कर पाए। न केवल जैन-परम्परा में, अपितु बौद्धपरम्परा में भी भगवान् बुद्ध के अन्तेवासी शिष्य आनन्द भी बुद्ध के जीवनकाल में अर्हत्-अवस्था को प्राप्त नहीं कर पाए। एक बार गणधर गौतम ने महावीर से पूछा-'हे भगवन्! ऐसा कौन सा कारण है, जो मेरी सर्वज्ञता या वीतरागता की प्राप्ति में बाधक बन रहा है?' महावीर ने उत्तर दिया-'हे गौतम! तुम्हारा मेरे प्रति जो रागभाव है, वही तुम्हारी सर्वज्ञता और वीतरागता में बाधक हैं।' इसी प्रकार बुद्ध के प्रति आनन्द का जो रागभाव था, वही उनके अर्हत् बनने में बाधक रहा, इसलिए जैनाचार्य व्यक्ति को रागात्मकता से ऊपर उठ जाने पर जोर डालते हैं, क्योंकि यही पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण और असहिष्णुतापूर्ण आचरण का मूल कारण है।
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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