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संस्कृत छाया :
युष्माकममृतभूते वचने श्रुतेऽपि मम हृदयात् ।
किं न ष्वष्कते रागो विषमिव दुष्टस्य सर्पस्य ।।१६७।। गुजराती अनुवाद :
___ आपना अमृत समान वचन सांधलवा छतां मारा हृदयमांथी दुष्ट सर्पनां विषनी जेम राग केम ओछो थतो नथी? हिन्दी अनुवाद :
आपके अमृत के समान वचनों को सुनकर भी मेरे हृदय से दुष्ट सर्प के विष के समान राग क्यों कम नहीं होता है?
(धनवाहननी अंतरव्यथा) गाहा :
भयवं! ताव न तुट्टइ दइयाए उवरि सव्वहा रागो।
नवरं करेमि एक्कं जइ जुत्तं तुम्ह पडिहाइ ।।१६८।। संस्कृत छाया :- .
हे भगवन्! तावन्न त्रुट्यति दयिताया उपरि सर्वथा रागः ।
नवरं करोमि एकं यदि युक्तं तव प्रतिभाति ।।१६८।। गुजराती अनुवाद :__ हे भगवन्! ज्यां सुधीस्त्री उपरनो (प्रत्येनो) राग सर्वथा तूटे नही त्यां सुधी हुं एक काम करवा इच्छु छु। पण जो आपने गमे तो...! हिन्दी अनुवाद :
हे भगवन्! जबतक स्त्री के ऊपर (प्रति) राग सर्वथा टूट नहीं जाता, तबतक मैं एक काम करना चाहता हूँ, परन्तु यदि आपको अच्छा लगे तो...।
(अनंगवतीनुं दर्शन आवश्यक)
गाहा:
सुरय-सुह-निष्पिवासो दिक्खं गिण्हामि तुम्ह पामूले । दइयाए समं अहयं दंसणमित्तेण संतुट्ठो ।।१६९।।
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