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________________ संस्कृत छाया : सुरत-सुख-निष्पिपासो दीक्षां गृह्णामि भवतः पादमूले । दयितया सममहकं दर्शन-मात्रेण संतुष्टः ।।१६९।। गुजराती अनुवाद : विषय-सुखनी तृष्णा-रहित हुँ आपना चरण-कमलमां पत्नी साथे दीक्षा ग्रहण करूं। जेथी तेणीना दर्शन मात्रथी संतोष पामुं। हिन्दी अनुवाद : विषयसुख की तृष्णा से रहित होकर मैं आपके चरण कमलों में अपनी पत्नी के साथ दीक्षा ग्रहण करूँ। जिससे उसके दर्शनमात्र से सन्तोष प्राप्त कर सकूँ। गाहा : एवं ववत्थियम्मि जइ जोग्गं देह मज्झ तो दिक्खं । तीए अदंसणेणं सक्केमि न जीवियं धरिउं ।।१७०।। संस्कृत छाया : एवं व्यवस्थिते यदि योग्यं देहि मम तदा दीक्षाम् । तस्या अदर्शनेन शक्नोमि न जीवितं धर्तुम् ।। १७०।। गुजराती अनुवाद :____ आवो मारो विचार छे आवी व्यवस्था होते छते जो आपने योग्य लागे तो दीक्षा आपो, तेणीना दर्शन विना तो हुँ जीवन टकावी नहीं शकुं। हिन्दी अनुवाद : ऐसा मेरा विचार है, ऐसी व्यवस्था होते हुए यदि आपको उचित लगे तो दीक्षा प्रदान करें, उसके दर्शन के बिना तो मैं जीवित ही नहीं रह सकता हूँ। गाहा : तव्वयणं सोऊण य सुधम्म-सूरी विचिंतए एवं । पेच्छह अइदुरंतो रागो कह विलसए लोए? ।। १७१।। संस्कृत छाया : तद्वचनं श्रुत्वा च सुधर्मसूरिर्विचिन्त्यत्येवम् । पश्यत अतिदुरन्तो रागः कथं विलसति लोके? ।।१७१।। 579
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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