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________________ (प्रतिदिन उपदेश) एवं दिवसे दिवसे संवेगकरेहिं महुर- वयणेहिं । बोहिज्जतो मणयं जाओ अह पयणु-रागो सो । । १६५ । । गाहा : संस्कृत छाया : एवं दिवसे दिवसे संवेगकरैर्मधुरवचनैः । बोध्यमानो मनाग् जातोऽथ प्रतनुरागः सः । । १६५।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे प्रतिदिन संवेगकारी मधुर वचनो वडे बोध पमडातो ते स्त्री उपर ओझा रागवाली थयो । हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार प्रतिदिन संवेगकारी मधुर वचनों के द्वारा बोध दिए जाने पर वह स्त्री के ऊपर अल्प रागवाला हुआ। गाहा : अन्न- दिणे एगंते गुरु- पुरओ अंजलिं करेऊण । धणवाहणो स एवं वज्जरई परम संविग्गो । । १६६ ।। संस्कृत छाया : अन्यदिने एकान्ते गुरुपुरतोऽञ्जलिं कृत्वा । धनवाहनः स एवं कथयति परमसंविज्ञः ।। १६६ ।। गुजराती अनुवाद : हवे एक दिवस एकांतमां पण संवेगी स्वो धनवाहन गुरूने अंजलि जोडीने आ प्रमाणे कहे छे। हिन्दी अनुवाद : अब एक दिन एकान्त में भी संवेगी वह धनावाहन गुरु को अंजलि जोड़कर इस प्रकार कहता है। गाहा : तुम्हाणममय- भूए वयणे निसुएवि मज्झ हिययाओ । किं नो सक्कइ रागो विसंव दुट्ठस्स सप्पस्स ? ।। १६७।। 577
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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