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गाहा:
जह विस-मीसं सरमंपि भोयणं जीवियं हरइ भुत्तं ।
तह सुंदरावि रमणी रमिया नणु दोग्गइं देइ ।।१६३।। संस्कृत छाया :
यथा विष-मिश्रं सरसमपि भोजनं जीवितं हरति भुक्तम् ।
तथा सुन्दराऽपि रमणी रता ननु दुर्गतिं ददाति ।। १६३।। गुजराती अनुवाद :
जे रीते बहु सरस पण विमिश्रित योजन खावामां आवे तो ते प्राणोने हरे छे ते रीते सुंदर स्वी स्त्री साथेनी क्रीडा खरेखर दुर्गति दायक बने छ। हिन्दी अनुवाद :
जिस प्रकार बहुत स्वादिष्ट परन्तु विषयुक्त भोजन किया जाए, तो वह प्राणों का हरण करता है, उसी प्रकार सुन्दर स्त्री के साथ क्रीड़ा सचमुच दुर्गतिदायक बनती है। गाहा :
ता उज्झसु अणुरायं कुगइ-निमित्ताए नियय-दइयाए ।
पंच-महव्वय-जुत्तो होसु तुमं चरण-निरउत्ति ।। १६४।। संस्कृत छाया :
तस्माद् उज्झानुरागं कुगति-निमित्ताया निजकदयितायाः ।
पञ्च-महाव्रत-युक्तो भव त्वञ्चरणनिरत इति ।।१६४।। गुजराती अनुवाद :
तेथी दुर्गतिना निमित्तछप पोतानी स्त्रीनो अनुराग तुं छोडी दे, अने पंच महाव्रतने धारण की तुं चारित्र (नो) मां रागी चन। हिन्दी अनुवाद :___अत: दुर्गति का निमित्तरूप अपनी स्त्री का अनुराग तू छोड़ दे, और पंच महाव्रत को धारण कर तू चारित्र (का) में रागी बन।
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