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संस्कृत छाया :
पवनोद्धत ध्वज - चञ्चल-1 - चित्तासु महिलास्वासक्तः । यो धर्मे प्रमाद्यति स का पुरुषो न सत्पुरुषः ।। १५० ।।
गुजराती अनुवाद :
पवनथी उडती धजा समान चंचल चित्तवाली स्त्रीओमां आसक्त जे पुरुष धर्ममां प्रमाद करे छे ते कायर पुरुष छे नहीं के सत्पुरुष ।
हिन्दी अनुवाद :
पवन से उड़ती हुई ध्वजा के समान चंचल चित्तवाली स्त्रियों में आसक्त जो पुरुष धर्म में प्रमाद करता है, वह कायर पुरुष है, न कि सत्पुरुष । (स्त्री विषनी वेलडी)
गाहा :
अविय
अंतो- विस- भरियाओ मणहर-रूवाओ बज्झ - वित्तीए । गुंजा - फल-सरिसाओ होंति सभावेण महिलाओ । । १५१ । ।
संस्कृत छाया :
अपि च- अन्तर्विषभृता मनोहररूपा बाह्यवृत्या ।
गुञ्जाफल सदृशा भवन्ति स्वभावेण महिलाः । । १५१ । ।
गुजराती अनुवाद :
वली चणोठी जेवी अंदरथी झेरथी भरेली तथा बहारथी आकर्षक रूपवाली स्वभावनी स्त्रिओ होय छे।
हिन्दी अनुवाद :
और स्त्रियाँ स्वभाव से ही चणोठी के समान अन्दर से विष से भरी हुई तथा बाहर के आकर्षक रूपवाली होती हैं।
गाहा :
सच्च-दय-सोय-रहिया अकज्ज- निरयाओ साहस - धणाओ । भय- जणणीओ, तासुं को व सकन्नो रई कुज्जा ? ।। १५२ ।। संस्कृत छाया :
सत्यदयाशौच-रहिता अकार्यनिरताः साहसघनाः । । भयजन्यस्तासु को वा सकर्णो रतिं कुर्यात् ।। १५२।।
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