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________________ संस्कृत छाया : तवापि वन्दनार्थमागमनं तेन भवति न मम । मम विरहे सा वराकी इदानीमपि खल्वास्ते कृच्छ्रम् ।। १४८।। गुजराती अनुवाद : ते कारणे ज तमने वंदन करवा माटे मारु आवq थतुं नथी, मारा विरहमां ते बिचारी अत्यारे पण दुःखपूर्वक रहे छ। हिन्दी अनुवाद : इस कारण से आपका वन्दन करने के लिए मेरे द्वारा आया नहीं जाता, मेरे विरह में वह बेचारी इस समय भी दुःखपूर्वक रह रही है। (गुरुजी द्वारा प्रकाश) गाहा : तत्तो गुरुणा भणियं चंचल-चित्ताण महिलिआण कए। को व सकन्नो पुरिसो हारिज्जा अप्पयं भद्द! ।।१४९।। संस्कृत छाया : ततो गुरुणा भणितं चञ्चल-चित्तानां महिलानां कृते । को वा सकर्णः पुरुषो हारयेदात्मानं भद्र! ।।१४९।। गुजराती अनुवाद : तेयारे गुरु भगवंत वडे कहेवायुं। चंचल चित्तवाली महिलाओं माटे हे भद्र! कयो बुद्धिशाली पुरुष पोताना आल्माने-(आल्मानी आराधनाने) हारी जाय? हिन्दी अनुवाद : तब गुरु भगवन्त के द्वारा कहा गया कि चंचल चित्तवाली महिलाओं के लिए हे भद्र! कौन सा बुद्धिशाली पुरुष अपनी आत्मा को (आत्मा की आराधना) को हार जाएगा? गाहा : पवणुद्धय-धय-चंचल-चित्तासु महिलिआसु आसत्तो। जो धम्मम्मि पमायइ सो काउरिसो, न सप्पुरिसो ।।१५०।। 569
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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