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(धनवाहन द्वारा खुलासो) गाहा :
एवं गुरुणो वयणं निसम्म धणवाहणो इमं भणइ ।
इच्छामि तुम्ह वयणं किं पुण निसुणेह मह भणियं ।।१४६।। संस्कृत छाया :
एतद्वरोर्वचनं निशम्य धनवाहन इदं भणति ।
इच्छामि तव वचनं किंपुन-निःशृणुत मया भणितम् ।। १४६।। गुजराती अनुवाद :
गुरु भगवंतनुं आ वचन सांथलीने धनवाहन आम कहेछे, आपना वचनने, हुं इच्छु छु, पण मारा वडे कहेलुं आप सांथलो। हिन्दी अनुवाद :
गुरु भगवन्त के वचन सुनकर धनवाहन इस प्रकार कहता है, आपके वचन को मैं जानता हूँ, परन्तु मेरे द्वारा कहा हुआ आप सुनें। गाहा :
अइनेह-परा वरई खणमवि विरहं न सक्कए सोढुं ।
दइयाऽणंगवई मह तेण न सक्केमि तं मोत्तुं ।।१४७।। संस्कृत छाया :
अतिस्नेहपरा वराकी क्षणमपि विरहं न शक्नोति सोढुम् ।
दयिताऽनङ्गवती मम तेन न शक्नोमि तां मोक्तुम् ।।१४७।। गुजराती अनुवाद :
अत्यंत स्नेहवाली मारी अनंगवती पत्नी छे, जे बिचारी क्षणमात्र पण मारा विरहने सहन करवा समर्थ नथी तेथी हुँ तेने छोडवा माटे समर्थ नथी। हिन्दी अनुवाद :
अत्यन्त स्नेहवाली मेरी अनंगवती पत्नी है. जो बेचारी क्षणमात्र भी मेरे विरह को सहन करने में समर्थ नहीं है, अत: मैं उसे छोड़ने के लिए समर्थ नहीं हूँ। गाहा :
तुब्भंपि वंदणत्थं आगमणं तेण होइ नो मज्झ । मह विरहे सा वरई इण्हिपि हु अच्छए किच्छं ।। १४८।।
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