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हिन्दी अनुवाद :
एक-एक इन्द्रिय के वश में हुए ये सभी मृत्यु को प्राप्त होते हैं तो पाँचों इन्द्रियों के वश में हुए मनुष्य की क्या गति होगी ?
गाहा :
ता पंचिंदिय - वसगो विसय- सुहं सेविऊण मा भद्द! | धम्मोवज्जण - रहिओ वच्चसु घोरम्मि नरयम्मि । । १४४ । ।
संस्कृत छाया :
तावत् पञ्चेन्द्रियवशगो विषयसुखं सेवित्वा मा भद्र! | धर्मोपार्जन - रहितो व्रज घोरे नरके ।। १४४ ।।
गुजराती अनुवाद :
तेथी हे भद्र! पांचे इंद्रियोने वश थयेलो तुं विषय-सुखने भोगवीने धर्मथी विमुख थयेलो घोर नरकमां न जा ।
हिन्दी अनुवाद :
हुए
अतः हे भद्र! पाँचों इन्द्रियों के वश में होकर तुम विषयसुख को भोग धर्म से विमुख होकर घोर नरक में मत जाओ।
गाहा :
-
किज्जउ धम्मम्मि मई विसय सुहं उज्झिऊण ता इहि । सहलीकरेसु सुंदर! अइदुलहं मणुय - जम्मंति ।। १४५ । । संस्कृत छाया :
क्रियतां धर्मे मतिर्विषय - सुखमुज्झित्वा तद् इदानीम् । सफली - कुरु सुन्दर! अतिदुर्लभं मनुजजन्मेति । । १४५ ।।
गुजराती अनुवाद :
माटे तु हालमां विषय-सुखनो त्याग करीने धर्ममां मति कर (अने तेप्रमाणे करीने) हे सुंदर ! अतिदुर्लभ-मनुष्य जन्मने सफल कर !
हिन्दी अनुवाद :
अतः तुम शीघ्र ही विषय - सुख का त्याग कर धर्म में मति करो ( और ऐसा करके) हे सुन्दर! अति दुर्लभ मनुष्य जन्म को सफल करो ।
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