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गुजराती अनुवाद :
समग्र दिशाओमां प्रकाश फेलावती दीपशिखाने जोई पंतगीयो पण चक्षु दोष वडे (रूपमां आसक्त) तेने ग्रहण करवा ललचायेलो मरणने पामे छे। हिन्दी अनुवाद :
समग्र दिशाओं में प्रकाश फैलाती हुई दीपशिखा को देखकर पतंगे भी चक्षु दोष के द्वारा (रूप में आसक्त) उसे ग्रहण करने के लोभ में पड़कर मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
गाहा :
गोरी - सद्दासत्तो निच्चल-तड्डविय - कन्न- जुयलिल्लो । सवणंदिय- दोसेणं मिओ मओ वाह - बाणेण । । १४२ ।
संस्कृत छाया :
गौरी - शब्दाऽऽसक्तो निश्चल-तत- कर्णयुगलकः । श्रवणेन्द्रियदोषेण मृगो मृतो व्याध - बाणेन ।। १४२ ।।
गुजराती अनुवाद :
स्त्री आदिना संगीतना शब्दोमां पागल बनेलो - स्थिर-लांबा कर्णयुगलवालों हरण श्रवणेन्द्रियनी आसक्तिथी शिकारीनां बाण वडे मराय छे। हिन्दी अनुवाद :
स्त्री आदि के संगीत के शब्दों में पागल बना हुआ, स्थिर, लम्बे कानों वाला हिरण श्रवणेन्द्रिय की आसक्ति के कारण शिकारी के बाणों से मारा जाता है । गाहा :
एक्किक्कंदिय - वसगा एए सव्वेवि पाविया निहणं । पंचिंदिय-वसगाणं नराण पुण का गई होज्जा ? ।। १४३।।
संस्कृत छाया :
एकै केन्द्रियवशगा एते सर्वेऽपि प्राप्ता निधनम् । पञ्चेन्द्रिय-वशगानां नराणां पुनः का गति र्भवेत् । । १४३।।
गुजराती अनुवाद :
एक-एक इंद्रियने वश थयेला पण सर्वे मरण दशाने पामे छे तो पांचे इंद्रियोने वश थयेला मनुष्योनी तो शी गति थाय?
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