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________________ गुजराती अनुवाद : पोताना हाथीओना समुदायने छोडीने हाथिणीनी साथे स्पर्शेन्द्रियनां विषय सुखमां आसक्त हाथी, पाणीना बंधमां फसायेलो मात्र स्पर्शेन्द्रियना सुखने कारणे मरणने पामे छ। हिन्दी अनुवाद : अपने हाथियों के समुदाय को छोड़कर हथिनी के साथ स्पर्शेन्द्रिय के विषयमुख में आसक्त हाथी, पानी के बन्धन में फँसा हुआ मात्र स्पर्शेन्द्रिय के सुख के कारण मृत्यु को प्राप्त करता है। गाहा : रसणिंदियम्मि लुद्धो विद्धो गलएण मच्छओ निहओ। घाणिंदियम्मि सत्तो पत्तो उरगोवि मरण-दुहं ।। १४०।। संस्कृत छाया : रसनेन्द्रिये लुब्यो विद्धो गलकेन मत्स्यको निहतः । घ्राणेन्द्रिये सक्तः प्राप्त उरगोऽपि मरण-दुःखम् ।।१४०।। गुजराती अनुवाद : रसनेन्द्रियमां लुब्ध थयेलो मत्स्य (मांसने कारणे) गलामां लोहकंटकथी बींधायेलो मृत्यु पामे छे। ज्यारे घ्राणेन्द्रियमां आसक्त थयेलो सर्प पण मरणना दुःखने पामे छ। हिन्दी अनुवाद : रसनेन्द्रिय में आसक्त मत्स्य (मांस के कारण) गले में लोहकंटक से विंधा हुआ मृत्यु को प्राप्त करता है। जबकि घ्राणेन्द्रिय में आसक्त सर्प भी मृत्यु को प्राप्त करता है। गाहा : उज्जोइय-सयल-दिसं दीव-सिंह पेच्छिउं पयंगोवि। तग्गहण-रओ मरणं पत्तो नणु चक्खु-दोसेण ।।१४१।। संस्कृत छाया : उद्योतित-सकल-दिशं-दीपशिखां प्रेक्ष्य पतङ्गोऽपि । तद्ग्रहणरक्तो मरणं प्राप्तो ननु चक्षुर्दोषेण ।।१४१।। 565
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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