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संस्कृत छाया :
वध-बन्ध-मरणादीः नानाविध-वेदना नरकेषु ।
प्राप्नुवन्ति विषयगृद्धा दुस्सहा दीर्थं कालम् ।। १३७।। गुजराती अनुवाद :
विषयमां आसक्त प्राणीओ लांबा काल सुधी नरकमां वध-बंध-मृत्यु विगेरे अनेक प्रकारनी दुःसह वेदनाओं प्राप्त करे छ। हिन्दी अनुवाद :
विषय में आसक्त प्राणि लम्बे समय तक नरक में वध-बन्धन-मृत्यु आदि अनेक प्रकार की दुःसह वेदनाओं को प्राप्त करता है।
(आ लोकमां वेदना) गाहा :
अच्छउ ता पर-लोए इहेव पाविंति गरुय-दुक्खाई ।
विसय-पसत्ता दुइंत-इंदिया देहिणो बहवे ।। १३८।। संस्कृत छाया :
आस्तां तावत् परलोके इहैव प्राप्नुवन्ति गुरुकदुःखानि ।
विषय-प्रसक्ता दुर्दान्तेन्द्रिया देहिनो बहवः ।। १३८।। गुजराती अनुवाद :
परलोक तो दूर रहो पण विषयमा लोलूपी-इंद्रियोने नहीं दमनारा घणा प्राणीओ आ लोकमां ज भयंकर दुःखोनें भोगवे छ। हिन्दी अनुवाद :
परलोक तो दूर, विषयलोलुप इन्द्रियों का दमन नहीं करने वाले अनेक प्रकार के प्राणी इसी लोक में भयंकर दु:खों को भोगते हैं।
(दृष्टांत द्वारा-इंद्रियोथी थता नुकसान- वर्णन) गाहा :
मोत्तूण नियय-जूहं करेणुं-सुह-सुरय-फास-पडिबद्धो ।
बद्धो वारी-बंधे फासेण गओ गओ निहणं ।।१३९।। संस्कृत छाया :
मुक्त्वा निजकयूथं करेणु-सुखसुरत-स्पर्शङ-प्रतिबद्धः । बद्धो वारिबन्ये स्पर्शेण गजो गतो निधनम् ।। १३९।।
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