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गाहा :
अह तं विसयासत्तं गुरु-रागं धम्म-करण-निरवेक्खं । परिचत्त-सेस-कज्जं दटुं लहु- भायरं गुरुणो ।।१३०।।
(सुधर्मसूरिने चिंता) जाया एसा चिंता भाया मे राग-मोहिओ वरओ। जिण-वयण-बाहिर-मई इंदिय-विसएसु आसत्तो ।।१३१।। दुल्लहमवि मणुयत्तं पावित्ता धम्म-विरहिओ एसो।
गच्छिस्सइ नरयम्मि घोरासु य तिरिय-जोणीसु ।।१३२।। संस्कृत छाया :
अथ तं विषयाऽऽसक्तं गुरुरागं धर्मकरण-निरपेक्षम। परित्यक्त-शेषकार्यं दृष्ट्वा लघुभ्रातरं गुरोः ।।१३०।। जाता एषा चिन्ता भ्राता मे राग-मोहितो वराकः जिनवचन-बहिर्मति रिन्द्रिय-विषयेष्वासक्तः ।।१३१।। दुर्लभमपि मनुजत्वं प्राप्य धर्म-विरहित एषः ।
गमिष्यति नरके घोराषु च तिर्यक्-योनिषु ।। १३२।। त्रिभिः कुलकम् गुजराती अनुवाद :
विषयमां आसक्त-अत्यंत रागी, धर्मकार्यमां निरपेक्ष-अन्य कार्योथी विमुक्त पोताना नाना पाईने जोइने मोटामाईने-चिंता थइ के आ माटो भाई रागथी मूढ जिन-वचनथी बाह्य बुद्धिवाळो (श्रद्धारहित), इंद्रियना विषयोमां आसक्त विचारो दुर्लब्ध स्वा मनुष्यत्वने पामीने पण धर्मरहित आ घोर नरकमां तथा तिर्यंचगतिमां जशे। हिन्दी अनुवाद :
विषय में आसक्त, अत्यन्त रागी, धर्मकार्य में निरपेक्ष, अन्य कार्यों से विमुक्त अपने छोटे भाई को देखकर बड़े भाई को चिन्ता हुई कि 'मेरा यह भाई राग से मूढ़ जिन-वचन से बाह्य बुद्धिवाला (श्रद्धारहित), इन्द्रिय के विषयों में आसक्त बेचारा इस दुर्लभ मनुष्यत्व को प्राप्त कर भी धर्मरहित यह घोर नरक में तथा तिर्यंचगति में जाएगा।
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