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(धनभूति सार्थवाहनु आगमन)
गाहा :
निय-परियणेण सहिओ सत्थाहो एइ गुरु-समीवम्मि ।
सामाइयाइ-जुत्तो संविग्गो सुणइ जिण-धम्मं ।। १२८।। संस्कृत छाया :
निजपरिजनेन सहितः सार्थवाह ऐति गुरुसमीपे ।
सामायिकादियुक्तः संविज्ञः शृणोति जिनधर्मम् ।। १२८।। गुजराती अनुवाद :
पोताना परिवार सहित सार्थवाह गुरुञ्चगवंत पासे आवे छे, अने सामायिकादिमां रहेलो, संविज्ञ स्वो (धनभूति) जैन धर्मनां सिद्धांतनुं श्रवण करे छ। हिन्दी अनुवाद :
अपने परिवार के साथ सार्थवाह गुरु भगवन्त के पास आता है और सामायिक आदि में स्थित, संविज्ञ (धनभूति) जैनधर्म के सिद्धान्त का श्रवण करता है।
(धनवाहन विषयासक्त) गाहा :
धणवाहणो उ दइया-सुरय-सुहासत्त-माणसो धणियं । पिउणा भणिओवि दढं न ए (हो?)इ गुरुवंदओ कह वि ।। १२९।। संस्कृत छाया :
धनवाहनस्तु दयिता-सुरत-सुखासक्त-मानसो गाढं ।
पित्रा भणितोऽपि दृढं नैति (न भवति) गुरुवन्दकः कथमपि ।। १२९।। गुजराती अनुवाद :
स्त्री साथे रति क्रीडामां आसक्त धनवाहन पिता वडे घणुं ज कहेवा छतां गुरुवंदन माटे क्यारेय जतो नथी। हिन्दी अनुवाद :
स्त्री के साथ रति क्रीड़ा में आसक्त धनवाहन पिता के द्वारा बहुत कहने पर भी गुरुवन्दन के लिए कभी नहीं जाता था।
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