SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (विजयवती नगरीमां सुधर्माचार्यनो प्रवेश ) गाहा : अह अन्नया सुधम्मो विहरंतो मुणि- वरो तहिं पत्तो । विदयवई - नयरीए वासा - रत्तस्स पारंभे ।। १२६ ।। संस्कृत छाया : अथान्यदा सुधर्मो विहरन् मुनिवरस्तत्र प्राप्तः । विजयवती नगर्यां वर्षारात्रस्य प्रारम्भे । । १२६ । । गुजराती अनुवाद : हवे कोई वखत सुधर्मसूरिजी विहार करतां विजयवती नगरीमां वर्षाऋतुनां प्रारंभमां पधार्यां । हिन्दी अनुवाद : उसके बाद किसी समय सुधर्मसूरिजी विहार करते हुए विजयवती नगरी में वर्षाऋतु में पधारे। (धनभूति द्वारा वसति प्रदान) साहूहिं तत्थ वसही विमग्गिया ताहि सत्थवाहेण । धणभूइणा विदिन्ना सुविसुद्धा जाण - सालासु ।। १२७ ।। गाहा : संस्कृत छाया : साधुभिस्तत्र वसतिर्विमार्गिता तदा सार्थवाहेन । धनभूतिना वितीर्णा सुविशुद्धा यानशालाषु । । १२७ ।। गुजराती अनुवाद : साधु भवतो त्यां वसतिनी याचना करी, त्यारे धनभूति सार्थवाह वडे वाहनशालामां सुविशुद्ध वसति अपाई । हिन्दी अनुवाद : साधु भगवन्तों ने वहाँ ठहरने के लिए स्थान मांगा, तब धनभूति सार्थवाह ने वाहनशाला में शुद्ध स्थान की व्यवस्था की। 559
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy