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________________ गाहा : इच्छामि तुम्ह मूले निरवज्जं गिहिउं सुपव्वज्ज । जणगेहिं अणुन्नाओ भीओ जर-लम्म-मरणाणं ।।११५।। संस्कृत छाया : इच्छामि तव मूले निरवद्यां ग्रहीतुं सुप्रव्रज्याम् । जनकाभ्या-मनुज्ञातो भीतो जराजन्ममरणेभ्यः ।।११५।। गुजराती अनुवाद : हे गुरुवर! जन्म-जा-मरणथी डरेलो, हुं माता-पितानी आज्ञा-पूर्वक आपना चरण-कमलमां निर्दोष दीक्षा (निरवद्य प्रखज्या) ग्रहण करवा इच्छु छु। हिन्दी अनुवाद : हे गुरुवर! जन्म-जरा-मृत्यु से भयभीत, मैं माता-पिता की आज्ञापूर्वक आपके चरण कमल में निर्दोष दीक्षा (निरवद्य प्रव्रज्या) ग्रहण करना चाहता हूँ। गाहा : भणियं गुरुणा य तओ होउ अविग्धं तुहेत्थ वत्थुम्मि । अम्मा-पिऊहिं मुक्को अह सो पव्वाविओ गुरुणा ।।११६।। संस्कृत छाया : भणितं गुरुणा ततो भवत्वविनं तवात्र वस्तुनि । अम्बा-पितृभ्यां मुक्तोऽथ सः प्रवाजितो गुरुणा ।।११६।। (सुधर्मने दीक्षा) गुजराती अनुवाद :__त्यारे गुरुभगवंते कडं आ विषयमां तु विघ्नरहित बन, त्यारबाद मातापिताथी अनुज्ञा पामेला तेने गुरु भगवंत वडे दीक्षा अपाई। हिन्दी अनुवाद : तब गुरु भगवन्त ने कहा 'इस विषय में तुम निर्विघ्न हो जाओ, उसके बाद माता-पिता की आज्ञा प्राप्त होने पर उसे गुरु भगवन्त के द्वारा दीक्षा प्रदान की गई। गाहा : अब्भसिय-दुविह-सिक्खो संजम-तव-विणय-करण-उज्जुत्तो। विहिणा गुरु-पामूले अहिज्जिउं सो समाढत्तो ।।११७।। 554
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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