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संस्कृत छाया :
अभ्यसित द्विविधशिक्षः संयमतपोविनयकरणोद्युक्तः ।
विधिना गुरुपादमूलेऽध्येतुं स समारब्धः ।।११७ गुजराती अनुवाद :
ग्रहण अने आसेवन एम चे प्रकारे शिक्षा प्राप्त की संयम-तप ओ विनय करवामां उद्यमी ते मुनिए गुरु भगवंतना चरण-कपलमां विधिपूर्वक
अध्यास प्रारंभ कर्यो। हिन्दी अनुवाद :
ग्रहण और आसेवन दो प्रकार की शिक्षा प्राप्त कर संयम-तप तथा विनय करने में उद्यमी उस मुनि ने गुरु भगवन्त के चरण कमल में विधिपूर्वक अभ्यास प्रारम्भ किया।
(चौदपूर्वना ज्ञाता सुधर्म) गाहा :
सिग्धं महा-मई सो जाओ सुत्तत्थ-तदुभय-विहिन्नू ।
चुद्दस-पुव्वी गुरु-साहु-सम्मओ गुण-गणावासो ।।११८।। संस्कृत छाया :
शीघ्रं महामतिः स जातः सुत्रार्थतदुभयविधिज्ञः ।
चतुर्दशपूर्वी गुरुसाधु-सम्मतो गुणगणावासः ।।११८।। गुजराती अनुवाद :
बुद्धिमान ते मुनिवर सूत्र-अर्थ अने चलेनी (तदुभयनी) विधिना शीघ्र ज्ञाता थया तथा चौद (चतुदर्श) पूर्वना ज्ञाता, गुरु तथा साधुओंने मान्य तथा गुणोना समुदायनां स्थानरूप थया। हिन्दी अनुवाद :
उस बुद्धिमान मुनिवर ने सूत्र-अर्थ तथा दोनों (तदुभय) की विधि के शीघ्र ज्ञाता हुए तथा चौदह (चतुर्दश) पूर्व के ज्ञाता,गुरु तथा साधुओं के द्वारा मान्य और गुणों के समुदायरूप हुए।
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