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________________ गाहा: सूरिस्स तस्स वयणं परमामय-सच्छहं निसामित्ता । संविग्गा सा परिसा जहागयं पडिगया सव्वा ।।११३।। संस्कृत छाया : सूरेस्तस्य वचनं परमामृत-सदृशं निशमय्य । संविज्ञा सा परिषद् यथाऽऽगतं प्रतिगता सर्वा ।। ११३।। गुजराती अनुवाद : परम अमृत समान ते सूरिजीनां वचन सांथलीने वैराग्य पामेली सध्या (परिषदजनो) जे रीते आवी हती ते रीते पाछी फटी। हिन्दी अनुवाद : परम अमृत के समान उस सूरिजी के वचनों को सुनकर वैराग्य को प्राप्त सभा (परिषद्जन) जिस प्रकार वहाँ आई थी, उसी प्रकार वापस लौट गई। (सुधर्मने प्रतिबोध) गाहा: सोऊण सुधम्म-नामो धम्म-मई गुरु-गिरं निसामित्ता। संसार-भउव्विग्गो पणमिय सूरि इमं भणइ ।।११४।। संस्कृत छाया : श्रुत्वा सुधर्मनामा धर्ममति रुगिरं निशमय्य । संसारभयोद्विग्नः प्रणम्य सूरिमिदं भणति ।।११४।। गुजराती अनुवाद :___धर्ममा बुद्धिवालो सुधर्म नामनो श्रेष्ठिपुत्र शुक्ल भगवंतनी वाणीनुं श्रवण करीने संसारना भयथी उद्विग्न थयेलो, आचार्य भगवंतने प्रमाण की आ प्रमाणे कहे छ। हिन्दी अनुवाद : धर्म में बुद्धिवाले सुधर्म नामक श्रेष्ठिपुत्र ने गुरुभगवन्त की वाणी का श्रवण कर संसार के भय से उद्विग्न हुआ और आचार्य भगवन्त को प्रणाम कर इस प्रकार कहा। 553
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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