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________________ श्रमण, वर्ष ६०-६१, अंक ४-१ अक्टू.-दिस.०९-जन.-मार्च १० जैनधर्म में धार्मिक-सहिष्णुता की स्थापना के मूल आधार डॉ. राजेन्द्र जैन धर्म का वास्तविक स्वरूप मानव-समाज में धार्मिक-मतान्धता एवं असहिष्णुतापूर्ण दृष्टिकोण के विकसित होने के जो भी प्रमुख कारण रहे हैं, उनमें धर्म के वास्तविक स्वरूप एवं उसके मूलभूत उद्देश्य के बारे में लोगों में सम्यक् समझ की कमी प्राथमिक कारण है। धर्म से सामान्यतया हमारा आशय, हमारे धार्मिक-ग्रन्थों में वर्णित कुछ अलौकिक शक्तियों के प्रति अंधश्रद्धा और धार्मिक अनुष्ठानों या विधिविधानों का निष्पादन करने मात्र से ही है, परन्तु यह धर्म का वास्तविक स्वरूप एवं पूर्ण उद्देश्य नहीं है। समदर्शी आचार्य हरिभद्र ने उनके द्वारा रचित 'संबोधप्रकरण' (१/१) नामक ग्रन्थ में स्पष्ट रूप से कहा है कि लोग धर्म-मार्ग के बारे में बात तो करते हैं, परन्तु वे यह नहीं जानते कि सही अर्थ में धर्म क्या है। प्रसिद्ध जैनग्रन्थ 'कार्तिकेयानप्रेक्षा' (४७८) में धर्म को 'वस्तु के मूल स्वभाव' के रूप में परिभाषित किया गया है। यदि ऐसा है, तो प्रश्न उठता है कि मनुष्य का मूल स्वभाव क्या है? प्रसिद्ध जैनग्रन्थ भगवतीसूत्र (१/९) में स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया गया है कि समत्वभाव में रहना ही आत्मा का मूल स्वभाव है तथा उसको उपलब्ध करना ही उसका अन्तिम लक्ष्य है। भगवान् महावीर ने धर्म की दो परिभाषाएँ दी हैं। आचारांगसूत्र (१/८/४) में वे कहते हैं-'सन्त महापुरुष प्रतिपादित करते हैं कि धर्म व्यक्ति की मानसिक-समभाव अवस्था है।' समत्वभाव को धर्म का मूल या सारतत्त्व माना गया है, क्योंकि यही सम्पूर्ण प्राणी-जगत्, जिसमें मनवजाति भी सम्मिलित है, का मूलभूत स्वभाव है। समत्वभाव वह स्थिति है जिसमें कि चेतना आवेगों, संवेगों तथा भावनात्मकविकारों से पूर्णतया मुक्त रहती है और मन के विकल्प शान्त हो जाते हैं। यही धर्म का मूल है, उसका वास्तविक स्वरूप है। हरिभद्र कहते हैं के कोई व्यक्ति दिगम्बर है या श्वेताम्बर या बौद्ध या किसी अन्य धर्म का मानने वाला है, यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। वस्तुतः जो कोई भी समत्वभाव को आत्मसात करेगा, वह * प्रो. एवं अध्यक्ष, कामर्स विभाग, बालकृष्ण शर्मा नवीन शासकीय महाविद्यालय, शाजापुर (म.प्र.)
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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