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________________ गुजराती अनुवाद : राग-द्वेष रहित अप्रतिबद्धविहारी, चतुर्दशपूर्वना ज्ञाता गुणोनां स्थानछप पूज्य आचार्य भगवंत पूर्व अने उत्तर दिशानां मध्य भागमां इशान खूणान्मां नंदन नामना उद्यानमां रह्यां । हिन्दी अनुवाद : अप्रतिबद्ध विहारी, चतुर्दश पूर्व के ज्ञाता, गुणों के स्थानरूप, पूज्य आचार्य भगवन्त पूर्व और उत्तर दिशा के मध्य में ईशान कोण में नन्दन नामक उद्यान में रुके। (धनभूति सार्थवाहनुं वंदनार्थे गमन) गाहा : सव्वोवि नयर-लोओ विणिग्गओ सूरि-वंदण-निमित्तं । घणभूईवि हु चलिओ भत्तीए तणय-संजुत्तो ।।१०४।। संस्कृत छाया : सर्वोऽपि नगरलोको विनिर्गतःसूरिवन्दन-निमित्तम् । धनभूतिरपि खलु चलितो भक्त्या तनयसंयुक्तः ।। १०४।। गुजराती अनुवाद : सर्व नगरवासी लोको आचार्य भगवंतनां वंदन माटे बहार नीकल्या, पुत्र सहित धनभूति पण भक्ति वडे (वंदन करवा) चाल्यो। हिन्दी अनुवाद : समस्त नगरवासी आचार्य भगवन्त को वन्दन करने के लिए बाहर निकले, पुत्रसहित धनभूति भी भक्तिपूर्वक (वन्दन करने) चल पड़ा। गाहा : उम्मुक्क-वाहणो अह दुराओ विहिय-उत्तरासंगो। ति पयक्खिणिऊण गुरुं वंदइ परमाए भत्तिए ।।१०५।। संस्कृत छाया : उन्मुक्तवाहनोऽथ दूराद् विहितोत्तरीयासङ्गः । त्रिः प्रदक्षिण्य्य गुरुं वन्दते परमया भक्त्या ।।१०५।। 549
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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