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________________ संस्कृत छाया : ततो भणति चित्रवेगस्तव प्रभावात् साम्प्रतं कुशलम् । तावत् सम्प्रति मम कथय महा-कुतूहलमत्र ।।९।। गुजराती अनुवाद : त्यारे चित्रवेग कहे छे, तारा प्रत्यावथी हमणां कुशल छु, परंतु मने अहीं कौतुक छे, तेनो आप हमणां खुलासो को। हिन्दी अनुवाद : तब चित्रवेग कहता है, तुम्हारे प्रभाव से अभी सकुशल हूँ, परन्तु मुझे यहाँ एक बात का आश्चर्य होता है, उसकी आप स्पष्टता करें। गाहा : पुव्व-भवे संबंधो तुमए सह आसि को ममं देव!? । केण व कज्जेण तुम आसि गओ उच्छुगो तइया? ।।९१।। संस्कृत छाया :- . पूर्वभवे सम्बन्यस्त्वया साहाऽऽसीत् को मम देव !? । केन वा कार्येण त्वमासी: गत उत्सुकस्तदा? ।।९१।। . गुजराती अनुवाद : हे देव! पूर्वभवमा तमारी साथे मारे शु संबंध हतो? वली त्यारे दिव्यमणि आप्या बाद कया कार्यथी उत्सुक वा तमे गया हता? हिन्दी अनुवाद : हे देव! पूर्वभव में आपके साथ मेरा क्या सम्बन्ध था? और उस समय दिव्यमणि देने के बाद किस कार्य से उत्सुक होकर आप गए थे? गाहा : तत्तो य भणइ तियसो इमेण कज्जेण आगओ सुयणु! । ता एग-मणो होउं साहिप्पंतं निसामेहि ।।१२।। संस्कृत छाया : ततश्च भणति त्रिदशोऽनेन कार्येणाऽऽगतः सुतनो! । स एक-मनो भूत्वा कथ्यमानं निशामय ।।१२।। 543
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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