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(चित्रवेग द्वारा देवनो विनय) गाहा :
दटुं समागयं तं वियसिय-वयणो य चित्तवेगो सो।
अब्भुट्ठिऊण पणमइ तं देवं परम-विणएण ।।८८।। संस्कृत छाया :
दृष्ट्वा समागतं तं विकसित-वदनश्च चित्रवेगः सः । __ अभ्युत्थाय प्रणमति तं देवं परम-विनयेन ।।८८ गुजराती अनुवाद :
सामे आवतां ते देवने जोइने विकस्वर मुखवालो ते चित्रवेग ऊयो थईने परम विनय वडे ते देवने प्रणाम करे छ। हिन्दी अनुवाद :
सामने से आते हुए उस देव को देखकर प्रसन्न मुखवाला वह चित्रवेग खड़ा होकर अत्यन्त विनय से उस देव को प्रणाम करता है। गाहा :
अह सो सुहासणत्यो तियसो संलवइ भद्द! तुह कुसलं? ।
मणिणो य पभावाओ नित्थिन्ना आवया विउला? ।।८९।। संस्कृत छाया :
अथ स सुखासनस्थस्त्रिदशः संलपति भद्र! तव कुशलम्? ।
मणेश्च प्रभावान्निस्तीर्णा आपदो विपुलाः? ।।८९।। गुजराती अनुवाद :
हवे ते सुखासनमा रहेलो देव कहे छे. हे भद्र! तुं कुशल छे ने? दिव्यमणिना प्रभावथी तारी सर्व आपत्तिओ नष्ट थई गई ने? हिन्दी अनुवाद :
अब सुखासन में रहा हुआ देव कहता है, हे भद्र! तुम सकुशल तो हो ना? दिव्यमणि के प्रभाव से तेरी सारी आपत्तियाँ नष्ट हो गई हैं ना? गाहा :
तो भणइ चित्तवेगो तुम्ह पभावाओ संपयं कुसलं । ता संपइ मह साहसु महंत-कोऊहलं इत्थ ।।१०।।
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