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________________ संस्कृत छाया : एवमादि चिन्तयित्वा धनदेव! मयेदं तु कथितम् । भो श्चित्रवेग! इदानीं मा क्रियतां कोऽपि शोक इति ।।८।। गुजराती अनुवाद : आ प्रमाणे चितवन करीने हे धनदेव! मारा वडे तेने कहेवायुं हे चित्रवेग! हवे तारा द्वारा कोइपण प्रकारनो शोक न कराय। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार चिन्तन करके हे धनदेव! मेरे द्वारा उसे कहा गया 'हे चित्रवेग! अब तुम किसी भी प्रकार का शोक मत करना। गाहा : जं एसो संसारो एरिस-दुक्खाण नियय-आवासो। पत्ताए आवयाए तेण विसाओ न कायव्यो ।।८२।। संस्कृत छाया : यदेष संसार ईदृश-दुःखानां नियताऽऽवासः । प्राप्तायामापदि तेन विषादो न कर्तव्यः ।। ८२।। गुजराती अनुवाद : कारण के आ संसार आवा प्रकारनां दुःखोनु चोक्कस घर ज छे तेथी आपत्ति आवे छते विषाद करवो योग्य नथी। हिन्दी अनुवाद : कारण कि यह संसार इस प्रकार के दु:खों का स्थायी निवास है, जिससे आपत्ति आने पर विषाद करना उचित नहीं है। गाहा : जर-मरण-रोग-वल्लह-विओग-बहुलम्मि एत्थ संसारे । जम्हा स-कम्म-जणियं जायइ जीवाण दुक्खंति ।। ८३।। संस्कृत छाया : जरामरणरोग-वल्लभवियोग-बहुलेऽत्र संसारे । यस्मात् स्वकर्मजनितं जायते जीवानां दुःखमिति ।। ८३।। 539
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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