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________________ संस्कृत छाया : रागो हि दुःखरूपो राग एव सकलापद्धेतुः । रागपरद्धा जीवा भ्रमन्ति भवसागरे घोरे ।।७९।। गुजराती अनुवाद : खरेखर राग स दुःख छप छ। राग ज समस्त आपत्तिओनुं कारण छ। रागथी पीडायेला घेरायेला जीवन भयंकर भव सागरमा परिश्रमण करे हिन्दी अनुवाद : सचमुच राग दुःखरूप है। राग ही समस्त आपत्तियों का कारण है। राग से पीड़ित और घिरा हुआ जीव भयंकर भवसागर में परिभ्रमण करता है। (रागरहितने परमसुख) गाहा : ताव च्चिय परम-सुहं जाव न रागो मणम्मि उच्छरइ । हंदि! सरागम्मि मणे दुक्ख-सहस्साई पविसंति ।।८।। संस्कृत छाया : तावदेव परम-सुखं यावन्न रागो मनसि उच्छलति । हन्दि। सरागे मनसि दुःखसहस्राणि प्रविशन्ति ।।८।। गुजराती अनुवाद :____ त्यां सुधी ज परम सुख छे के ज्यां सुधी मनमां राग पेदा थयो नथी। रागी मनमां तो हजारो दुःखो प्रवेश करे ज छ। हिन्दी अनुवाद : तब तक ही परम सुख है, जब तक मन में राग पैदा नहीं हुआ। रागी मन में तो हजारों दुःख प्रवेश करता ही है। गाहा : एमाइ चिंतिऊणं धणदेव! मए इमं तु वज्जरियं । भो चित्तवेग! इण्हि मा कीरउ कोवि सोगोत्ति ।।८१।। १. हंदि-निश्चयार्थे अव्यय । 538
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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