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गाहा :
वल्लह-विओय-तविया असमंजस - चिट्ठियाई कुणमाणा । नरए नेरइया इव निच्चं चिय दुक्खिया होंति ।। ७७।। संस्कृत छाया :
वल्लभवियोगतप्ता असमञ्जस - चेष्टितानि कुर्वन्तः ।
नरके नैरयिका इव नित्यमेव दुःखिता भवन्ति ।। ७७ ।। गुजराती अनुवाद
:
वळी प्रिय वस्तुना वियोगथी दुःखी (आक्रांत ) थयेला प्राणीओ अयोग्य आचारने आचरतां नरक मां नारकीना जीवोनी जेम हंमेशा ज दुःखी थाय छे।
हिन्दी अनुवाद :
प्रिय वस्तु के वियोग से दुःखी (आक्रांत ) प्राणी अयोग्य आचरण करते हुए नरक के नारकी जीवों के समान हमेशा दुःखी होते हैं।
गाहा :
वह बंध - मारणाई लहंति रागेण मोहिया जीवा ।
-
वच्छंति दुग्गईए सहंति विविहाई दुखाई ।। ७८ ।।
संस्कृत छाया :
-:
वधबन्धमारणानि लभन्ते रागेण मोहिता जीवाः ।
व्रजन्ति दुर्गतौ सहन्ते विविधानि दुःखानि ।। ७८ ।।
गुजराती अनुवाद :
रागथी मोह पामेला जीवो वध-बंध-मरण वगेरे पीडा पामे छे (अंते) दुर्गतिमां जाय छे अने विविध दुःखोने सहन करे छे ।
हिन्दी अनुवाद :
राग से मोह को प्राप्त जीव वध-बंध - मृत्यु आदि की पीड़ा प्राप्त करता है ( अन्त में) दुर्गति में जाता है और विविध दुःखों को सहन करता है ।
गाहा :
रागो हि दुक्ख - रूवो रागो च्चिय सयल - आवया - हेऊ । राग- परद्धा जीवा भमंति भव सागरे घोरे ।। ७९ ।।
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