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कार्य-अकार्य को नहीं जानने वाले प्राणी भयंकर विपत्तियों को प्राप्त करते हैं।
(धारिणी सखीद्वारा आश्वासन) गाहा :
सारीर-माणसाणं दूसह-दुक्खाण कारणं पढमं ।
इह पर-लोए घोरो रागो च्चिय सयल-जीवाणं ।।७५।। संस्कृत छाया :
शारीरमानसानां दुःसह-दुःखानां कारणं प्रथमं ।
इह परलोके घोरो राग एव सकलजीवानाम् ।।७५।। गुजराती अनुवाद :
आ लोक अने परलोकमां समस्त जीवोने शारीरिक अथवा मानसिक स्व (दुःसह) असह्य दुःखोनुं मुख्य कारण घोर एवो राग ज छ। हिन्दी अनुवाद :
इस लोक और परलोक में समस्त जीवों को शारीरिक अथवा मानसिक (दुःसह) असह्य दु:खों का मुख्य कारण घोर राग ही है। गाहा :
रागंधा इह जीवी दुल्लह-लोयम्मि गाढमणुरत्ता।
जं वेइंति असायं कत्तो तं हंदि! नरएवि? ।।७६।। संस्कृत छाया :
रागान्या इह जीवा दुर्लभलोके गाढमनुरक्ताः ।
यद् वेदयन्ति अशातं कुतस्तद्धन्दि नरकेऽपि? ।।७६ ।। गुजराती अनुवाद :
दुर्लभ स्वा मानवधवमां पण गाढ रागवाला रागांध जीवो जे (असाता) दुःख (वेदनीय) ने अनुष्धवे छे तेवी वेदना नरकमां पण क्याथी होय? हिन्दी अनुवाद :
. इस दुर्लभ मानव भव में भी प्रगाढ़ राग वाले रागांध जीव जो (असाता) द:ख (वेदनीय) का अनुभव करते हैं, वैसी वेदना नरक में भी कहाँ होती है?
१. कुतस्तद्धन्दि-आश्चर्यार्थे अव्यय ।
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