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गाहा :
हा अज्जउत्त! वल्लह! एय-अणत्थस्स कारिणी अहयं ।
हा! पाविठ्ठा तइया किं न मया मयण-पच्चक्खं? ।।५९।। संस्कृत छाया :
हा आर्यपुत्र! हे वल्लभ! एतदनर्थस्य कारिण्यहकम् ।
हा! पापिष्ठे! तदा किं न मृता मदनप्रत्यक्षम्? ५९।। गुजराती अनुवाद :
हे आर्यपुत्र! हे वल्लब्ध! आ बधां अनर्थ- कारण हुंज छु। अने पोताने । संबोधीने बोलवा लागी हे पापिष्ठा! हुं ते समये कामदेव समक्ष केम न मरण पामी?' हिन्दी अनुवाद :
हे आर्यपुत्र! हे वल्लभ! इन सारे अनर्थों का कारण मैं ही हूँ। और स्वयं को सम्बोधित कर बोलने लगी 'हे पापिनी! मैं उस समय कामदेव के समक्ष क्यों नहीं मर गई?' गाहा :
हा! कह मज्झ निमित्ते पिययम! अइगरुय-आवयं पत्तो ।
हा! अज्जउत्त! इम्हि तुह विरहे नत्थि मह जीयं ।।६।। संस्कृत छाया :
हा कथं मम निमित्ते हे प्रियतम! अतिगुरुकापदं प्राप्तः ।
हा आर्यपुत्र! इदानीं तव विरहे नास्ति मम जीवितम् ।।६।। गुजराती अनुवाद :
हे प्रियतम! मारा कारणे आप मोटी आपत्तिने पाग्या छो। हे आर्यपुत्र! हवे आपना विरहमां माझं जीवन टकवानुं नथी। हिन्दी अनुवाद :
हे प्रियतम! मेरे कारण ही आप भयंकर विपत्ति में पड़े हैं। हे आर्यपुत्र! अब आपके विरह में मेरा जीवित रहना सम्भव नहीं है। गाहा :
भो! भो! धणदेव! इमं सोउं खयरस्स भासियं तस्स । एत्यंतरम्मि य महं एस विगप्यो समुप्पन्नो ।।६१।।
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