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(चित्रवेगनुं पृथ्वीपर पतन)
वियणाए विब्भलंगो संवलि - तरुणो इमस्स हिट्ठम्मि । गय- चेयणोव्व जाओ भुयंग- संघाय - उब्बद्धो ।।५७।।
गाहा :
संस्कृत छाया :
वेदनया विह्वलाङ्गः शाल्मलितरोरस्याधः ।
गतचेतन इव जातो भुजङ्ग-सङ्घातोद्बद्धः ।। ५७।।
गुजराती अनुवाद :वेदनाथी व्याकुल अंगवाली (शाल्मली) आ सेमलना वृक्षंनी नीचे सर्प समूहथी बंधायेलो चैतन्य रहित जेवो थई गयो ।
हिन्दी अनुवाद :
वेदना से व्याकुल अंगवाला (शाल्मली) इस सेमल के वृक्ष के नीचे सर्पसमूह से बँधा हुआ चैतन्य रहित के समान हो गया ।
( कनकमालानो विलाप )
गाहा :
सावि मह पाण- दइया गरुयं दट्ठूण आवयं मज्झं । अइदुक्खिया वराई रोयंता घग्घर सरेण ।। ५८ ।।
संस्कृत छाया :
सापि मम प्राणदयिता गुरुकां दृष्ट्वा आपदं मम । अतिदुःखिता वराकी रुदन्ती घर्घर - स्वरेण ।। ५८ ।।
गुजराती अनुवाद
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ते मारी प्राणप्रिया पण दुःसह एवी मारी (वेदना) भारे तकलीफ जोड़ने ( गद्गद् स्वरे) खोखरा अवाजे रडती बिचारी (खूख) बहु दुःखी थई । हिन्दी अनुवाद :
वह मेरी प्राणप्रिया भी दुःसह मेरी (वेदना) भयंकर कष्ट देखकर ( गद्गद् स्वर में) सिसकती और रोती हुई बेचारी बहुत दु:खी हुई।
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