________________
गाहा:
एसो हु पावकारी सुह- मच्चूए न चेव जोग्गोत्ति । ता दुह-मारेण इमो मारेयव्वो तुमे कुमर! ।।५०।। इय मज्झ सिक्खणत्थं हओ तुमं नेव दिव्व-सत्येहिं ।
न उणो तुह विज्जाहिं हम्मइ सत्तीओ एएसिं ।।५१।। युग्मम्।। संस्कृत छाया :
एष खलु पापकारी सुखमृत्यो नैंव योग्य इति ।। तस्माद् दुःखमारेणाऽयं मारयितव्यस्त्वया कुमार! ।।५।। इति मम शिक्षणार्थं हतस्त्वं नैव दिव्यशस्वैः । न पुनस्तव विद्याभिर्हन्यते शक्तय एतेषाम् ।।५१।। (युग्मम्)
(महान शस्त्रों द्वारा मरवानी चित्रवेगनी अयोग्यता) गुजराती अनुवाद :
___ आ (चित्रवेग) बहु पापकारी छे, तेथी सुखपूर्वक मृत्युने योग्य नथी, तेथी (हे! नभोवहन!) तारा वडे आ कुमार दुःखी थाय तेवा मार वडे मरावो जोइए। आ प्रमाणे मने शिक्षा आपवा माटे आ दिव्य शस्त्रो वडे तुं हणाये नहीं, पण तारी विद्या वडे स शस्त्रोनी शक्ति नाश नथी पामी। हिन्दी अनुवाद :
यह (चित्रवेग) बहुत पापकारी है, जिसके कारण सुखपूर्वक मृत्यु को प्राप्त होने योग्य नहीं है, अत: (हे नभोवाहन!) तेरे द्वारा यह कुमार दुःखी हो इस प्रकार इसे मारना चाहिए। इस प्रकार मुझे शिक्षा देने के लिए इन दिव्य शस्त्रों के द्वारा तूं नहीं मरा, परन्तु तेरी विद्या के द्वारा इन शस्त्रों की शक्ति नष्ट नहीं हुई। गाहा :
ता इण्हि मह न छुट्टसि पायालं जइवि पविससे मूढ! ।
मोरोवि अहव घिप्पइ हंत! तइज्जम्मि उड्डाणे ।।५२।। संस्कृत छाया :
तस्मादिदानी मन्न छुटसि पातालं पद्यपि प्रविशसि मूढ!। . मयूरोऽपि अथवा गृह्यते हन्त! तृतीयस्मिन् उड्डयने ।। ५२।।
525