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संस्कृत छाया :
यदि कथमपि क्षुद्रविद्याप्रभावतो मम शरः प्रतिस्खलितः ।
तथापि न छोटयसि इदानीमाग्नेयादीनां शस्त्राणाम् ।।४१।। गुजराती अनुवाद :
क्षुद्र विद्याना प्रभावथी जो के गमे ते रीते माझं बाण निष्फल गयुं छे तो पण हालमां मारा (अग्नि संबंधी) आग्नेय आदि शस्योथी तुं छूटीश नहीं। हिन्दी अनुवाद :
क्षुद्र विद्या के प्रभाव से किसी भी तरह मेरा बाण निष्फल गया है, परन्तु फिर भी अभी मेरे (अग्नि से सम्बन्धित) आग्नेय आदि शस्त्रों से तुम छूटोगे नहीं। गाहा :
एवं च भणंतेणं तेणं आवाहियाई सत्थाई।
अहिमंतिय मंतेहिं मुंचइ इक्किक्कयं कमसो ।।४२।। संस्कृत छाया :
एवञ्च भणता तेनाऽऽआवाहितानि ।
अभिमन्त्र्य मन्त्रैर्मुश्चति एकैकं क्रमशः ।।४२।। गुजराती अनुवाद :
आम बोलता तेना वडे शस्योने बोलावाया अने क्रमथी एक-एक बाण मंत्रो वडे अभिमंत्रिने (मारा ऊपर) छोडवा लाग्यो। हिन्दी अनुवाद :
इस प्रकार बोलते हुए शस्त्रों का आवाहन किया और क्रमश: एक-एक बाण को अभिमन्त्रित कर (मेरे ऊपर) छोड़ने लगा। गाहा :
अवियउठित-फुलिंगालं फुरंत-जाला-सहस्स-संवलियं ।
अग्गेयं अइभीमं मज्झ वहट्ठाए पट्टवियं ।।४३।। संस्कृत छाया :
अपि चउत्तिष्ठन्-सफुल्लिगं स्फुरज्-ज्वाला-सहस्र-संवलितम् । आनेय-मतिभीमं मम वधार्थाय प्रस्थापितम् ।। ४३।।
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