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________________ संस्कृत छाया : कृत्वा राजविरुद्धं नश्यन् कुत्र छोटयसि पाप? | सूपकारशाला-पतितः शशक इव विनंक्ष्यसि इदानीम् ।। ३२ । । गुजराती अनुवाद : राज्यविरुद्ध कर्म करीने हे पापी नाशतो एवो तुं केवी रीते छूटीश ? रसोईशाळामां आवेला ससलानी माफक तुं हमणां मरी जईश | हिन्दी अनुवाद : राज्यविरुद्ध कर्म करके भागता हुआ हे पापी ! तुम किस तरह छूट सकेगा ? रसोईघर में आए हुए खरगोश की भाँति तू अभी मारा जाएगा। गाहा : रे! रे! केण बलेणं एरिस कम्मं तुमे समायरियं ? | हरिऊण मह महेलं नासंतो कत्थ छुट्टिहिसि ? ।। ३३ ।। संस्कृत छाया : रे! रे! केन बलेनेदृश - कर्म त्वया समाचरितम् ? । हृत्वा मम महिलां नश्यन् कुत्र छोटयिष्यसि ? ।। ३३ ।। गुजराती अनुवाद : रे! रे! काया (अधर्मीना) बल वडे आवु कार्य तारा वडे करायुं? मारी पत्नीनुं अपहरण करीने पलायन थतो तुं हवे क्यां छूटकारो पामीश? हिन्दी अनुवाद : रे! रे! किस अधर्मी के बल पर तेरे द्वारा ऐसा कार्य किया गया ? मेरी पत्नी का अपहरण कर भागते हुए तू अब कैसे छुटकारा पाएगा? गाहा : रे मूढ ! केण दिन्ना तुह बुद्धी एरिसा अहम्मेण ? | अहवा कुविओ दइवो पुरिसं किं हणइ लउडे ? ।। ३४ ।। संस्कृत छाया : रे मूढ ! केन दत्ता तव बुद्धिदृष्यधर्मणा ? | अथवा कुपितो दैवः पुरुषं किं हन्ति लकुटेन? ।। ३४ ।। 517
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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