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________________ गाहा : नीईए वट्टमाणा मणुया न लहंति आवया - निवहं । सुयणु ! मए का नीई तुमं हरंतेण विहियत्ति ? ।। २३ ।। संस्कृत छाया : नीत्या वर्तमाना मनुजा न लभन्ते आपन्निवहम् । सुतनो ! मया का नीतिस्त्वां हरता विहितेति ? ।। २३ ।। गुजराती अनुवाद : नीतिनुं पालन करनारा मानवो आपत्तिओने पामता नथी, हे सुतनु ! तारुं अपहरण करतां मारा वडे कई नीति कराई ? हिन्दी अनुवाद : नीति का पालन करनेवाले मनुष्य के ऊपर कोई आपत्ति नहीं आती है, हे सुतनु ! तुम्हारा अपहरण करते हुए मुझसे कौन सी नीति का पालन किया गया। गाहा : विहियं राय - विरुद्धं अणुराय पर व्वसेहिं अम्हेहिं । - ता इहि आवयाए सुयणु ! विसाओ न कायव्वो ।। २४ ।। संस्कृत छाया : विहितं राज- विरुद्ध - मनुरागपरवशाभ्यामावाभ्याम् । तत इदानीमापदि सुतनो! विषादो न कर्तव्यः ।। २४ ।। गुजराती अनुवाद : (प्रेम) अनुरागने आधीन आपणा वडे राज्यविरुद्ध आचरण करायुं छे. तेथी हे प्रिये! अत्यारे आपत्तिमां विषाद न करवो जोईए । हिन्दी अनुवाद :(प्रेम) अनुराग के अधीन हमारे द्वारा राज्यविरुद्ध आचरण किया गया है, अतः प्रिये! इस समय आई हुई आपत्ति में विषाद करना नहीं चाहिए। गाहा : किञ्च । एवं ठिएवि सुंदरि ! अणुकूलो कहवि जइ विही होइ । ता आवयावि अम्हं परिणमिही संपयत्तेण ।। २५ ।। 513
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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