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संस्कृत छाया :. हा नाथ! प्राणवल्लभ! हत-विधिना पापकारिण्यहकम् ।
वंशस्येव फलसमयस्तव विनाशाय विहितेति ।।१६।। गुजराती अनुवाद :
हे नाथ! हे प्राणवल्लभ! दुर्दैवने कारणे पापकारिणी स्वी हुंज वासना फल आववाना समये तेनी जेन्म तमारा विनाश माटे थई। हिन्दी अनुवाद :
हे नाथ! हे प्राणवल्लभ! दुर्भाग्य के कारण मैं पापकारिणी बांस का फल आने के समय समान तुम्हारे विनाश का कारण सिद्ध हुई। गाहा :
जइ तइया मण-वल्लह! पाण-च्चाओ मए कओ होतो।
ता किं एरिस-गरु-आवईए तं नाह! निवडतो? ।।१७।। संस्कृत छाया :
यदि तदा मनोवल्लभ! प्राणत्यागो मया कृतोऽभविष्यत् ।
तर्हि किं ईदश-गुरु-आपदि त्वं नाथ! न्यपतिष्यः ?।।१७।। गुजराती अनुवाद :
हे प्राणप्रिय! जो त्यारे मारा वडे प्राणत्याग करायो होत तो हे नाथ! तसे आवी मोटी आपत्तिमां पडत? हिन्दी अनुवाद :
हे प्राणप्रिय! यदि उस समय मेरे द्वारा प्राणत्याग किया गया होता तो हे नाथ! आप इतनी बड़ी विपत्ति में पड़ते? गाहा :
जइ गम्भाओ पडता बालत्ते वावि जइ मया होता ।
ता किं मज्झ निमित्ते होज्ज इमा आवया तुज्झ? ।।१८।। संस्कृत छाया :
यदि गर्भादपतिष्यं बालत्वे वाऽपि यदि मृताऽ भविष्यम् । तदा किं मम निमित्ते भवेदियमापदा तव? ।।१८।।
१. ग्रन्थे होतो वर्तते किन्तु स्त्री-विशेषणत्वात होता होंती सम्यक् दृश्यते।
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