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________________ गाहा: ता होउ पिए! किंचिवि जं दिढे मज्झ पुव्व-कम्मेहिं । नवि किंचि सोइएणं इह लब्भइ जीव-लोगम्मि ।।१४।। संस्कृत छाया : तस्माद्भवतु प्रिये! किञ्चिदपि यद् दृष्टं मम पूर्वकर्मभिः । नाऽपि किञ्चित् शोचितेनेह लभ्यते जीवलोके ।।१४।। गुजराती अनुवाद : तेथी हे प्रिये! मारा पूर्वना कर्म वडे जे जोवायुं होय ते थाय, आ लोकमां शोक करवा वडे कंई पण पळतुं नथी। हिन्दी अनुवाद : अत: हे प्रिये! मेरे पूर्वजन्म के कर्मों के कारण जो देखा गया है, वह होने दो, इस लोक में शोक करने से कुछ भी नहीं मिलता है। (कनकमालानो पश्चात्ताप) गाहा : एवं च मए भणिए मुंचती थूल-अंसुय-पवाहं । गरुय-भय-सोय-तविया सा बाला इय पुणो भणइ ।।१५।। संस्कृत छाया : एवञ्च मयि भणिते मुञ्चन्ती स्थूलाश्रुप्रवाहम् । गुरुक-भय-शोक-तप्ता सा बालेति पुनर्भणति ।। १५ गुजराती अनुवाद :___आ प्रमाणे में कडं त्यारे मोटा अश्रु प्रवाहने वहावती अत्यंत अय तथा शोकथी तपेली ते प्रिया फी आ प्रमाणे बोलवा लागी। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार मैंने कहा तो अश्रु प्रवाह को बहाती हुई अत्यन्त भय तथा शोक से तप्त वह प्रिया पुन: इस प्रकार बोलने लगी। गाहा : हा! नाह! पाण-वल्लह! हय-विहिणा पाव-कारिणी अहयं । वंसस्सव फल-समओ तुह विणासाय विहियत्ति ।।१६।। 509
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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