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________________ नभोवाहन को आते हुए देखकर (इस प्रकार) चिन्ता मत कर! मत कर! गाहा: अन्नो न कोवि इण्हि काउं सक्किज्जए उवाउत्ति । एसो जं सिग्घ-गई आसन्नो वट्टइ इयाणिं ।।१२।। संस्कृत छाया : अन्यो न कोऽपि इदानीं कर्तुं शक्यते उपाय इति । एष यत् शीघ्रगतिरासन्नो वर्तते इदानीम् ।।१२।। गुजराती अनुवाद : हालमां बीजो कोईपण उपाय करवो शक्य नथी कारण के ते हमणा शीघ्रगतिवालो नजीक ज रहेलो छ। हिन्दी अनुवाद : इस समय कोई भी अन्य उपाय करना सम्भव नहीं है, कारण कि वह शीघ्र गतिवाला नजदीक ही है। गाहा : दूरेवि न सक्किज्जइ उक्कड-विज्जस्स नासिउमिमस्स । किं पुण लोयण-विसए पत्तेहिं सुयणु! अम्हेहिं ?।।१३।। संस्कृत छाया : दूरेऽपि न शक्यते उत्कटविद्याद् नंष्टुमस्मात् । किं पुनर्लोचनविषये प्राप्तैः सुतनो! अस्माभिः? ।।१३।। गुजराती अनुवाद : हे सुंदररांगी! दूर होय तो पण प्रचंड विद्यावाला आ विद्याधरथी आपणे पलायन थर्बु शक्य नथी तो वळी आ तो नजर समक्ष आवी गयो छे तो आपणा वडे शु थाय? हिन्दी अनुवाद : हे, सुंदराङ्गी! दूर होते हुए भी प्रचंड विद्यावाले इस विद्याधर से भागना हमारे लिए सम्भव नहीं है। जबकि यह तो नजरों के समक्ष आ जाने के कारण अब क्या हो सकता है? 508
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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