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संस्कृत छाया :
तस्मात् प्रिय! कमप्युपायं चिन्तय पीडा न भवति यथा तव ।
अहकमपि विरहगुरुदुःखभागिनी यथा न भवामीति ।।७।। गुजराती अनुवाद :
तेथी हे प्रियतम! आप कोइ पण उपाय विचारो जेथी आपने कोई पीडा न थाय, अने हुं पण विरहना तीव्र दुःख भोगवनारी न थाऊँ! हिन्दी अनुवाद :
अत: हे, प्रियतम! आप कोई भी उपाय सोचें, जिससे आपको कोई कष्ट न हो, और मैं भी विरह के तीव्र दु:ख भोगनेवाली न बनें। गाहा :
वलिय-ग्गीवं तत्तो पुलोइऊणं मएवि संलत्तं ।
एमेव कीस सुंदरि! गरुय-विसायं समुव्वहसि ? ।।८।। संस्कृत छाया :
वलितग्रीवं ततो दृष्ट्वा मयाऽपि सल्लप्तम् ।
एवमेव कस्मात् सुन्दरि! गुरुकविषादं समुद्वहसि ।।८।। गुजराती अनुवाद :
त्यारे वळेली डोकवाला में पण ते तरफ जोईने का, हे सुंदरी! हा एम ज लागे छे परंतु तुं मारे शोक केम करे छे? हिन्दी अनुवाद :___तब झुकी हुई गर्दनवाली मैंने भी उसकी ओर देखकर कहा—'हे, सुन्दरी! हाँ ऐसा ही लगता है परन्तु तुम इतना शोक क्यों करती हो? गाहा :
जइ ता अतक्किओवि हु एज्ज इमो खयर-विंद-परियरिओ।
ता होज्ज भयं गरुयं, विनाए किं भयं सुयणु! ।।९।। संस्कृत छाया :
यदि तावदतर्कितोऽपि खलु एयादयं खचरवृन्द-परिकरितः । तर्हि भवेद् भयं गुरुकं विज्ञाते किं भयं सुतनो! ।।९।।
१. स्त्री-संबोधनमां
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