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________________ गाहा : एमाइ-बहु-विगप्पे चिंतेमाणो वयामि जा तत्थ । ताव य मह दइयाए भणियं भय-वेविर-तणूए ।।५।। संस्कृत छाया : एवमादि-बहुविकल्पाञ्चिन्तयन् व्रजामि यावत्तत्र । तावच्च मम दयितया भणितं भयवेपमान-तन्वा ।।५।। गुजराती अनुवाद : ___ आ प्रमाणे घणा विकल्पो करतो हुं ते रस्ते जतो हतो। तेटलामा थयथी ध्रुजता शरीरवाली मारी प्रिया बोली। हिन्दी अनुवाद : इस प्रकार अनेक विकल्प करता हुआ मैं रास्ते पर जा रहा था। इतने में भय से कांपते हुए शरीरवाली मेरी प्रिया बोली। गाहा : हा नाह! कोवि एसो दीसइ एंतोऽणुमग्गमम्हाणं । विज्जाहर-परियरिओ मन्ने नहवाहणो होही ।।६।। संस्कृत छाया : हा नाथ ! कोऽपि एष दृश्यते आयन्ननुमार्गमावयोः । विद्याधर-परिकरितो मन्ये नभोवाहनो भविष्यति ।।६।। गुजराती अनुवाद : हे नाथ! आपणी चे नी पाछळ आवतो आ कोई देखाय छे, विद्याधरोथी परिवरेलो आ नभोवाहन हशे एम मने लागे छ। हिन्दी अनुवाद : हे नाथ! हम दोनों के पीछे कोई आता हुआ दिखाई दे रहा है। विद्याधरों से घिरा हुआ यह नभोवाहन होगा, ऐसा लगता है। गाहा : ता पिय! किंपि उवायं चिंतसु पीडा न होई जह तुम्ह । अहयंपि विरह-गुरु-दुक्ख-भाइणी जह न होमित्ति ।।७।। 505
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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