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________________ जैन जगत् : १४५ की कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस कथा को लिखने का मात्र इतना अभिप्राय है कि परीषह-जय से तथा ध्यान की एकाग्रता से केवल ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। जैनाचार्यों ने सुकुमालचरिउ में सुकुमाल की सुकुमारता का जो प्रसंग उपस्थित किये हैं वे नितान्त मौलिक हैं और उसे अपने कथा में उजागर करने का उद्देश्य मात्र इतना है कि अनेक शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद साधक अपने तपस्या के पथ से डिगता नहीं है। दूसरे यह भी बताने का प्रयत्न किया गया है कि बहुत प्रयत्नों के बावजूद भी भवितव्य नहीं रुकता और न ही तन की सुकुमारता व पूर्व जन्मों के कर्म आत्म विकास के लिये बद्ध जीव को किसी प्रकार रोक सकते हैं। इस प्रकार का ग्रन्थ जो भाषा की दुरूहता के कारण पाठक वर्ग के समक्ष अभी तक उपस्थित नहीं हो सका था, प्रो. डॉ. प्रेमसुमन जैन ने उसके अनुवाद और सम्पादन द्वारा उसे अत्यन्त ही आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया है। ऐसे अन्य ग्रन्थों पर भी स्वतन्त्र रूप से अध्ययन की आवश्यकता है। प्रो. जैन निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। ग्रन्थ की बाहरी सज्जा आकर्षक व लिखावट सुन्दर है। -डॉ. शारदा सिंह, रिसर्च आफिसर (पार्श्वनाथ विद्यापीठ) २. आचार्य पूज्यपाददेव विरचित-समाधितन्त्रम् (आर्हत्भाष्यम्) संस्कृत टीका का पद्यानुवाद-आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज। संस्कृत टीका-आर्हत्भाष्य का हिन्दी अनुवाद मुनि श्री प्रणम्यसागर जी महाराज । संस्करण-द्वितीय, अगस्त २००९, मूल्य ६५/- प्रकाशन- धर्मोदय साहित्य प्रकाशन, सागर,म.प्र.। 'समाधितन्त्रम्' (मूलग्रंथ) की रचना छठी शताब्दी के आचार्य पूज्यपाद ने आचार्य कुन्दकुन्द से प्रभावित होकर की। इस ग्रंथ का दूसरा नाम 'समाधिशतक' है। इसमें कुल १०५ पद्य हैं। आचार्य पूज्यपाद में कवि, वैयाकरण और दार्शनिक इन तीनों व्यक्तित्वों का एकत्र समवाय पाया जाता है। इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा के स्वरूप का विस्तार पूर्वक विवेचन है। उपरोक्त पुस्तक में वही आध्यात्मिक ऊर्जा दिखायी देती है जो आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में दिखायी देती है। आचार्य पूज्यपाद ने बहुत कम शब्दों में व कम कारिकाओं में अध्यात्म का मर्म अपने ग्रन्थों में भरकर गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ किया है। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्यों में अनोखे व्यक्तित्व वाले संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत भाषा में निष्णात, अनेक ग्रन्थों की संस्कृत टीका लिखने
SR No.525071
Book TitleSramana 2010 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2010
Total Pages272
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size20 MB
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