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साहित्य सत्कार
पुस्तक समीक्षा १. सुकुमालसामिचरिउ : लेखक, प्रो. डॉ. प्रेमसुमन जैन, प्रकाशक, अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जैन विद्या संस्थान, राजस्थान, २००५।।
११८९ से १२०८ के बीच में रचित प्रस्तुत पुस्तक कवि विबुध श्रीधर द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों में से एक है। जैनकथा साहित्य में परिपक्षों पर विजय प्राप्त करने के सन्दर्भ में यह कथा अत्यन्त प्रसिद्ध है। जैन आगम साहित्य में यह कथा सर्वप्रथम प्राकृत साहित्य में उपलब्ध होती है। उसके बाद यह प्रकीर्णक, भगवती आराधना, आराधनासार आदि में वर्णित होने के पश्चात् पाँचवी, छठी शताब्दी तक एक साधक मुनि के रूप में लोगों के मानस में प्रतिष्ठित हो चुकी थी और उसके बाद भी अनेक कालों व आधुनिक भाषाओं में इस ग्रन्थ पर टीकाएं लिखी गयीं जो इसकी विशेषता को स्वतः ही उजागर करता है। इस सन्दर्भ में स्पष्ट करना आवश्यक है कि मुनि सुकुमालस्वामी के जीवन पर स्वतन्त्ररूप से लिखी गयी यह पहली रचना है। यद्यपि सुकुमाल की कथा इससे पूर्व भी अनेक ग्रन्थों में उपलब्ध है- जैसे णायाधम्मकहा, आवश्यकचूर्णि, वृहत्कल्पभाष्य आदि।
प्रस्तुत ग्रन्थ क, ख, ग, घ नामक चार भागों में विभाजित है। 'क' के अन्तर्गत प्रस्तावना है जिसमें प्रथमतः तो पाण्डुलियों का परिचय, ग्रन्थ के रचयिता का परिचय, रचनाकाल, सुकुमालसामिचरिउ का कथानक, तथा प्राचीन और अर्वाचीन कथाएं, ग्रन्थ की भाषा, अलंकार तथा कथा में वर्णित समाज व संस्कृति का परिचय दिया गया है। 'ख' के अन्तर्गत मूल अपभ्रंश ग्रन्थ विषयानुक्रम 'ग' में ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद 'घ' में शब्दानुक्रमणिका दिया गया है।
ग्रन्थ के सम्पादन में प्रो. प्रेमसुमन जैन के साहित्यिक दक्षता का सहज अनुमान लग जाता है। इतना ही नहीं प्रो. प्रेमसुमन द्वारा अनुवादित और सम्पादित यह ग्रन्थ अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा स्वयंभू पुरस्कार २००३ से भी सम्मानित किया जा चुका है।
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कि यह ग्रन्थ मुनि सुकुमालस्वामी जो अत्यन्त सुकुमार थे के जीवन पर काव्यमयी गाथा है। भारतीय साहित्य स्त्री पात्र के सुकुमारता के सम्बन्ध में अनेक काव्यों और पद्यों की रचना से परिपूर्ण है किन्तु 'सुकुमालसामिचरिउ' पुरुष के सुकुमारता के सम्बन्ध में एकदम नया व अनूठा है। जैन कथा साहित्य में परीषह-जय के प्रसंग में मुनि सुकुमारस्वामी